Book Title: Jain Dharm Darshan Part 03
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 61
________________ आरोग्य की दृष्टि से त्याज्य है। तामसी विकारी XI. बैंगन अभक्ष्य :- - सब प्रकार के बैंगन अभक्ष्य है। इसमें बहुत सारे छोटे छोटे बीज होते हैं तथा उसके सूक्ष्म जीव भी होते हैं। बैंगन कंदमूल नहीं है फिर भी मन और तन दोनों को बिगाडने वाला होने से भगवान ने उसके भक्षण का निषेध किया है। बैंगन को सुखाकर खाना भी निषेध है। यह हृदय को धृष्ट करता है। * बैंगन भक्षण से होनेवाली हानियां : * बैंगन खाने से तामसभाव जागृत होता है। उन्माद बढता है। धर्मसंग्रह में कहा गया है - प्रमाद और निद्रा को बढाता है और विकार पैदा करता है। बैंगन बेगन ***** क्षय रोगी * बैंगन खाने से शरीर में कफ और पित्त बढता है। * अधिक बैंगन खानेवाले के लिए चार - चार दिन ज्वर और क्षय रोग सुलभ है। * ईश्वर स्मरण में बाधक होने से पुराणों में भी इसके भक्षण का निषेक किया गया है। XII. तुच्छ फल अभक्ष्य :- जिसमें खाने योग्य पदार्थ कम और फेंकने योग्य पदार्थ ज्यादा हो। जिसके खाने से न तो तृप्ति होती है और न शक्ति प्राप्त होती है। बहुत सारे फल खाने के बाद भी पेट नहीं भरता हो । जैसे बेर, ताफल, पीलु पीचु, पके गुंदे, सीताफल, जामुन आदि । विद्यालय तुच्छ फल इन तुच्छफलों को खाने के बाद हम उनकी गुठली या बीज बाहर फेंक देते हैं। झूठे होने से इसमें सतत समुर्च्छिम जीव उत्पन्न होते रहते हैं। बीज इधर उधर फेंक देने से उनकी मिठास के कारण अनेक चींटियां और जीव जंतु आते हैं। पैरों के नीचे आने से उन जीवों की हिंसा भी होती है। इस तरह बहुत विराधना होती है। अतः तुच्छ फलों का भक्षण त्याग करना चाहिए। अनजान फल XIII. अनजान फल अभक्ष्य :- यह फल या फूल अभक्ष्य है जिनके नाम जाति, गुण दोष से हम अनजान हैं उनके गुणों या दोषों से अज्ञात हम उनके भक्षण से रोगग्रस्त या मरण को भी प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए उनका त्याग युक्तियुक्त है। उदाहरण :- हितैषी, महान उपकारी गुरु महाराज ने वंकचूल चोर को अज्ञात फल के त्याग का नियम करवाया था । उसने प्रबल भूख लगने चाही फार्म पर भी इस नियम का दृढता से पालन किया। फलतः उनके प्राण बच गए और उसके अन्य चोर साथी अज्ञात फल के भक्षण के कारण विष के वशीभूत हो मरण धर्म को प्राप्त हुए । अभक्ष्य त्याग के महिमा को पारावार नही है। इससे वंकचूल ने आत्मरक्षा कर और उत्तरोत्तर नियम के पालन द्वारा जीवन सफल किया। मृत्यु पश्चात् वंकचूल नियम के प्रभाव से 12वें देवलोक में गये। För Person 56 e Use Only खजूर - www.jainelibrary.org

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