Book Title: Jain Dharm Darshan Part 03
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ 1. उत्तम क्षमा : क्रोध का प्रसंग उपस्थित होने पर भी प्रतिक्रिया न करना उत्तम क्षमा हैं। आवेश का निमित्त सामने होने पर और प्रतिक्रिया करने का सामर्थ्य होते हुए भी भावों में मलिनता न आने देना तथा पूर्व के वैर विरोध का स्मरण करके सकारण या अकारण उत्तेजित नहीं होना क्षमा है। "अध्यात्मप्रकरण' में लिखा है कि सम्भाव से गाली सहन करने वाले को 66 करोड उपवास का फल मिलता है। क्षमा धर्म पांच प्रकार का बताया गया है। 1. उपकार क्षमा : • किसी ने हमारा नुकसान किया है, तो भी इसने अमुक समय पर हम पर उपकार भी तो किया था, ऐसा जानकर सहनशीलता रखना, उपकार क्षमा है। यदि मैं क्रोध करूंगा तो वह हानि पहुंचायेगा, ऐसा सोचकर क्षमा 2. अपकार क्षमा : करना अपकार क्षमा है। 3. विपाक क्षमा : रखना विपाक क्षमा है। 4. वचन क्षमा : रखना वचन क्षमा है। - यदि क्रोध करूंगा तो कर्मबंध होगा, ऐसा सोचकर क्षमा शास्त्र में क्षमा रखने के लिए कहा है, ऐसा सोचकर क्षमा 5. धर्म क्षमा : आत्मा का धर्म ही क्षमा है, ऐसा सोचकर क्षमा रखना :- नम्रता रखना अथवा मान का त्याग करना। आत्मा में मान कषाय के अभाव में जो धर्मक्षमा है। 2. उत्तम मार्दव कोमलता या मृदुलता प्रगट होती है उसे मार्दव कहा जाता है। मार्दव जीवन में तभी आता है जब जातिमद आदि आठ प्रकार का मद न हो। निश्चय दृष्टि से पर- पदार्थों का मैं कर्ता हूं ऐसी मान्यता रुप अहंकार का उन्मूलन करना मादर्व है। अभिमान के प्रसंग पर नम्रता को धारण करना और तुरंत अपने लिए सोचना कि मैं एक दिन निगोद में था। धीरे धीरे विकास करते हुए मैंने मनुष्य जन्म पाया है अब प्राप्त संयोगों का अहंकार करने से मैं दुर्गति में चला जाउंगा, तो मेरा पतन होगा। इस प्रकार अहंकार पर रोक लगाने से संवर का लाभ होगा और आत्म गुणों का दर्शन करने से निर्जरा का लाभ होगा। 3. उत्तम आर्जव:- आर्जव अर्थात् सरलता । कपट रहित होना, या माया, दम्भ ठगी आदि का सर्वथा त्याग करना, आर्जव धर्म है। भगवान महावीरस्वामी ने सरलता की उपलब्धि के विषय में कहा है, आर्जव से काया की सरलता, भावों की सरलता, भाषा की सरलता और योगों की अविसंवादिता जीव प्राप्त कर लेता है और अविसंवादिता संपन्न जीव शुद्ध धर्म का आराधक होता है। वह संवर - निर्जरा रुप कर्मक्षयकारणक धर्म की आराधना कर पाता है। उत्तम सरलता तब कहलाएगी जब हम किसी की कुटिलता को जानकर भी उसके साथ सरलतापूर्वक व्यवहार करें। सरल व्यक्ति के साथ सरलता का व्यवहार आसान है पर जटिल और कुटिल व्यक्ति के साथ भी सरलता का व्यवहार करना उत्तम सरलता है। 4. उत्तम शौच :- शौच धर्म का दूसरा नाम है निर्लोभता । लोभ को जीतना व पौद्गलिक पदार्थों पर आसक्ति न रखना शौच धर्म है। शौच धर्म के साधक को सोचना चाहिए कि सांसारिक पर पदार्थों को तो अनंत अनंत - 28

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146