Book Title: Jain Dharm Darshan Part 03
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ माँ! अब ये अप्रिय गीत क्यों गाये जा रहे हैं ? माँ ने गंभीर स्वर में कहा :- वत्स ! ये गीत नहीं रुदन के स्वर है। जिस पुत्र के जन्म की खुशी में सुरीले गीत गाये जा रहे थे उसी पुत्र के वियोग में अब शोक और विलाप के गीत गाये जा रहे हैं। थावच्चापुत्र ने कहा :- माँ! वह बच्चा अभी जन्मा और अभी मर गया - क्या मैं भी एक दिन मरुंगा। माँ ने कहा :- पुत्र! यह इस संसार की अनिवार्य घटना है, जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु भी देर - सवेर अवश्य होती है। थावच्चापुत्र ने संसार की अनुप्रेक्षा करते हुए मां से पूछा :- माँ! क्या यह जीवन जन्म, जरा, रोग व मरण युक्त होकर यो ही चलता रहेगा ? क्या इस संसार परंपरा का कोई अंत नहीं है। माँ ने बताया :- वत्स ! यदि इस संसार परंपरा में अपवाद है तो भगवान अरिष्टनेमि के शरण में जाने का सत्परुषार्थ करनेवाला मनुष्य जन्म मरण की दुःख परंपरा का अन्त कर सकता है। भगवान की शरण संसार परंपरा का छेदन भेदन अमरत्व की प्राप्त करा सकती है। माँ के मुख से अमरत्व प्राप्ति के वचन सुनकर थावच्चापुत्र पुलकित हो उठा। एक दिन भगवान अरिष्टनेमि की वाणी सुनकर वह विरक्त हो गया और दीक्षित होकर उसने संसार का अंत कर दिया। ___4. एकत्व भावना :- आत्मा के अकेलेपन का चिंतन करना एकत्व भावना है। कहा जाता है :मैं एकाकी एकत्व लिए, एकत्व लिए सब ही आते। कत्व भावना तन धन को साथी समझा था, पर ये भी छोड चले जाते || _संसार में प्रत्येक मनुष्य अकेला ही जन्म लेता है और __ अकेला ही मरण को प्राप्त होता है, उसके साथ कोई भी स्वजन परिजन नहीं होता है, जीव अपने कर्मों का स्वयं कर्ता और भोक्ता होता है, संसार में भ्रमवश तन - धन, स्नेही स्वजन को अपना साथी मानता है, लेकिन एक समय वे उसे छोडकर चले जाते हैं। ऐसा चिंतन एकत्व भावना है। नमिराजर्षि ने एकत्व भावना भायी थी। मिथिला नगर के राजा नमिराजर्षि के शरीर में दाह ज्वर उत्पन्न हो गया। उस रोग के निवारण के लिए रानियां अपने हाथों से चंदन घिसकर नमिराजर्षि के शरीर पर लेप कर रही थी। चंदन घिसते समय रानीयों के हाथों में पहने हुए कंगणों से आवाज हो रही थी। नमिराजार्षि कंगन के शोर से बेचैन हो गये। तब रानियों ने एक कंगन अपने अपने हाथ में रखा जिससे आवाज आनी बंद हो गयी। नमिराजा ने पूछा “क्या चंदन घिसना बंद हो गया ?'' उत्तर मिला - राजन् चंदन घिसा जा रहा है किंतु आवाज इसलिए नहीं आ रही है कि रानियों के हाथ में एक - एक ही कंगन है। यह सुनकर उनके चिंतन ने एक मोड लिया “संसार में जहां अनेक है वहां दुःख है, जहां एक है वह सुख - शांति है। उन्होंने संकल्प कर लिया कि यदि मैं रोग मुक्त हो जाऊंगा तो सब संयोगों को छोड एकत्व का अवलम्बन लूंगा। संयोग से रोग शांत हो गया और नमिराजर्षि ने दीक्षा अंगीकार करके आत्म कल्याण किया और मुक्त हुए। 5. अन्यत्व भावना :- यह जो शरीर मैंने धारण कर रखा है, वह मेरा नहीं है, फिर घर - परिवार, कुटुम्ब, जाति, धन - वैभव आदि मेरे कैसे हो सकते हैं ? मैं अन्य हूँ और ये सब मुझसे भिन्न है, अलग है। शरीरादि तो जड (ORD 18401000RAM. wang 34|

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146