Book Title: Jain Dharm Darshan Part 03
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 22
________________ * दस कल्प * कल्प यानी साधुओं के आचार। साधुओं के आचार 10 प्रकार के है। 1. अचेलक 2. औद्देशिक 3. शय्यातर 4. राज पिण्ड 5. कृतिक्रम 6. महाव्रत 7. ज्येष्टकल्प 8. प्रतिक्रमण 9. मासकल्प और 10. पर्युषणा कल्प। 1. अचेलक कल्पः- आदिश्वर और महावीर स्वामी के साधु जीर्ण प्राय अल्पमूल्य वाले श्वेत वस्त्र धारण करते हैं और बावीस तीर्थंकरों के साधुजन प्रमाण रहित नवीन बहुमूल्य पंच वर्ण के वस्त्र भी धारण करते हैं। 2. औद्देशिक कल्पः- किसी भी मुनि के निमित्त बनाया हुआ आहारादि प्रथम व अंतिम तीर्थंकर के सर्व साधुओं को नहीं कल्पता, और बावीस तीर्थंकरों के शासन में जिस साधु के निमित्त आहारादि बनाया हो उसको नहीं कल्पे पर बाकी सब साधुजन ले सकते हैं। 3. शय्यातर कल्पः- अर्थात् जिस जगह साधु उतरे हो, उस जगह का मालिक, उपाश्रय (स्थान) देनेवाले के घर का आहार - पानी समस्त तीर्थंकरों के मुनियों को लेना नहीं, कल्प शैय्यातर के घर की इतनी चीजें लेना नहीं कल्पे 1. आहार 2. पानी 3. फल मेवा खादिम आदि 4. मुखवास 5. वस्त्र 6. पात्र 7. कम्बल 8. रजोहरण 9. सूई डोरा 10. चाकू केन्ची 11. दान्त व कान साफ करने के साधन 12. नाखुन काटने के साधन। यह बारह प्रकार का पिण्ड सर्व तीर्थंकरों के समय सभी साधुओं को नहीं कल्पता 1. घास 2. पत्थर की चीज (खरल आदि) 3. राख 4. पीठपाटिया 5. मकान 6. पाट - पाटला 7. रंग - रोगान आदि वस्तु ले सकते हैं। 4. राजपिंड कल्प :- सेनापति, पुरोहित, राज्याभिषेक युक्त राजा, श्रेष्ठि आदि, उसका आहार - पानी पहले और अंतिम शासन के मुनियों को नहीं कल्पता है, बावीस तीर्थंकर के मुनियों को कल्पता है। ___5. कृतिकर्म कल्पः- अर्थात् वंदन, छोटा साधु बडे साधु के चरणों में वंदन करें, यह व्यवहार समग्र तीर्थंकरों के मुनियों के समान है। 6. महाव्रत कल्प :- पहले और अंतिम तीर्थंकरों के साधु के पांच महाव्रत होते हैं और बावीस तीर्थंकरों के शासन में साधु के चार महाव्रत होने के कारण कि वे स्त्री को परिग्रह में ही गिन लेते हैं। 7. ज्येष्ठ कल्प :- अर्थात् बडे - लघु पने का व्यवहार, संसार की वास्तविकताओं को देख, प्रभु ने धर्म पुरुष - प्रधान बताया। इसलिए सौ वर्ष की दीक्षीत साध्वी आज के दीक्षित मनिराज को वंदन करें। इस तरह प्रभ ने एक दिन के दीक्षित साधु पर भी साध्वीयों के योग क्षेम की महान जवाबदारी डाली है। श्री आदिनाथ भगवान के और महावीर स्वामी के शासन में एक छोटी और दूसरी बडी इस तरह दो दीक्षाएं होती है, छोटेपन और बडेपन का पर्याय बडी दीक्षा से गिना जाता है, बावीस तीर्थंकरों के साधुओं में तो दीक्षा दिन से ही छोटाई - बडाई गिनी जाती है। 8. प्रतिक्रमण कल्प :- श्री आदिनाथ भगवान और श्री महावीरस्वामी के शासन के साधुओं को दोष लगे या न लगे. दोनों समय प्रतिक्रमण अवश्य करना होता हैं. बावीस जिनेश्वरों के मनिजन तो दोष लगने पर ही प्रतिक्रमण करते हैं, अन्यथा नहीं। ___9. मास कल्प :- पहले और अंतिम तीर्थंकरों के साधु नौकल्पी विहार करते हैं, यानी एक एक मास के आठ कल्प और चौमासे का एक कल्प इस प्रकार एक ही स्थान ज्यादा से ज्यादा रह सकने का समय पठन - पाठन के RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR R RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRite cinticialidititicitatician alireleineneviaterdisturnea 18

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