Book Title: Jain Darshan Vaigyanik Drushtie
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 91
________________ 56 Jainism: Through Science • तु शब्दात् मनुष्यतिरश्चां कायस्थितिः चतुर्विंशतिवर्षप्रमाणा........ तावत् स्थितिरिति । [Tandulveyaliya payanna pp.-6] 10. • इमो खलु जीवो अम्मापि संयोगे माउ उयं पिउसुक्कं ते तदुभय संसद्वं कलुषं किब्बिसं तप्पढमाए आहारं आहारिता गब्मत्ताए वक्कमइ सत्ताहं कललं होइ, सत्ताहं होइ अब्बुयं । (सूत्र - १) अब्बुया जायए पेसी, पेसीओ य घणं भवे ॥ तो पढमे मासे करिसूणं पलं जायइ १. बीउ मासे सी संजय घणा २. तइ मासे माउए दोहलं जणइ ३. चउत्थे मासे माउए अंगाई पीणेइ ४. पंचमे मासे पंच पिंडियाओ पाणिं पायं सिरं चेव निव्वत्तेइ ५. छट्टे मासे पित्तसोणियं उवचिणेइ ६. सत्तमे मासे सत सिरासयाई (७००) पंच पेसी सयाई (५००) नव धमनीओ नव नउडं च रोमकूवसयसहस्साई निव्वत्तेइ (९९,००,०००) विणा केसुमंसुणा । सह केसमंसुणा अद्भुट्ठाओ रोमकूव कोडीओ निव्वते । अट्ठमे मासे वित्ती कायो हवइ । (सूत्र -२ ) 11. • दाहिणकुच्छी पुरिसस्स होइ, वामा उ इत्थीयाए य । Vicára ratnakara pp-171-A 12. पणपन्नाए परेणं जोणी पमिलायए महिलियाणं । पणसत्तरिइ परओ पाएण पुमं भवेऽबीओ ॥ • 13. • दुन्नि अहोरत्तसए संपुण्णे सत्तसत्तरिं चेव । [Tandulaveyaliya payanna pp-7] गब्र्भमि वसइ जीवो, अद्धमहोरत्तमण्णं च ॥८ ॥ [Tandulaveyaliya payanná pp-6] • तथा चोक्तं स्थानाङ्गटीकायाम् - मासि मासि रजः स्त्रीणामजस्त्र श्रवति त्र्यहम् । वत्सरात् द्वादशादूद्धवं याति पञ्चाशतः क्षयम् ॥ [Tandulaveyaliya payanna pp. 4] [Ibidem pp. 5-A.] [Tandulaveyäliya payannā pp. 3-A] And the Kalpasütra Subodhika Commentary on the last sütra of the fourth part. 14. • मणुस पंचेंदिय तिरिक्ख जोणिय बीए णं भंते । जोणिब्भूए केवतियं कालं संचिट्ठिइ ! गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं' बारसमुहुत्ता ! [The Bhagavati Sūtra part 1 pp-98 published by Mahavira Jain Vidyalaya ] • रिउसमय व्हायनारी नरोवभोगेण गब्मसंमूह । बारसमुहुत्त मज्झे, जायइ उवरिं पुणो नेय ॥ • बारस चेव मुहुत्ता, उवरिं विद्धंस गच्छइ सा । 15. • तथा चोक्तं स्थानाङ्गटीकायाम्..... पूर्णषोडशवर्षा स्त्री, पूर्ण विंशेन संगता । [Pravacan Saroddhara pp. 401 ] [Tadulaveyaliya payanna pp. 4] शुद्धे गर्भाशये १, मार्गे २, रक्ते ३, शुक्रे ४, ऽनिले ५ पुनः ।

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