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जैनदर्शन :वैज्ञानिक दृष्टिसे
15 कुछ अन्तर है । तेउकायिक' जीवों से तैजस वर्गणा के पुद्गल स्कन्ध अधिकतर सूक्ष्म हैं। ___ अतः व्यवहार नय से तैजस्कायिक जीवों और वायुकायिक जीवों को ही यहाँ पुद्गल-स्कन्ध के रूप में ग्रहण किया है, ऐसा मानने पर यह वर्गीकरण यथायोग्य प्रतीत होता है और हम अग्नि को स्पष्ट रूप से आँखों द्वारा देख सकते हैं, स्पर्श करने पर उष्ण स्पर्श का अनुभव भी होता है, जबकि वायु केवल स्पर्श से ही (जब गतिमान होती है तब) इन्द्रियगोचर होती है; अतः अग्नि को (प्रकाश नहीं,किन्तु प्रकाश उत्पन्न करने वाली ज्योति को) बादर-सूक्ष्म श्रेणी में और वायु को सूक्ष्मबादर श्रेणी में रखना उपयुक्त है ।
डॉ. जैन ने भूगोल और खगोल के बारे में भी प्रश्न उठाये हैं किन्तु इसके प्रश्नों के बारे में अभी बहुत-कुछ संशोधन (रिसर्च) करना बाकी है, अतः हम यथावसर उन के उत्तर भी देंगे।
हमने डॉ. जैन के प्रश्नों के यथामति उत्तर दिये हैं, जो जैन शास्त्रों से सम्मत हैं । आशा है कि पाठकों को इससे सन्तोष होगा ।
__- मुनि नन्दीघोष विजय, खंभात
(तीर्थकर : जुलाई-अगस्त, 87) छिपकली चतुरिन्द्रिय या पंचेन्द्रिय ? आचार्य लघुविशेषांक : जुलाई-अगस्त, ८७ के विशेषांक में आपने मेरा लेख समाधान : डॉ. अनिलकुमार जैन के प्रश्नों का दिया है । उसमें मुझसे एक बड़ी गलती हो गयी है । हमने 'संदेश' (८-७-१९८७ / बुधवार) की 'ज्ञान-विज्ञान' पूर्ति के आधार पर छिपकली को चतुरिन्द्रिय बताया है; किन्तु 'तत्वार्थ सूत्र' में छिपकली को गृहकोकिला नाम दिया है और उसे पंचेन्द्रिय तिर्यंच के पोतज विभाग में रखा है । उसके साथ ऐसे दूसरे जन्तु सरटक-गिरगिट (जो अपने परिसर के अनुसार रंग बदलता है) और गोधा (जो छिपकली-जैसी होती है) को भी इसी विभाग में रखा गया है । दूसरी और कल्पसूत्र में चतुर्दश पूर्वधर आचार्य भद्रबाहु ने हल्लोहल्लिका और हलिका यानी छिपकली और गिरगिट के सूक्ष्म अण्ड होने का उल्लेख किया है; अत: छिपकली और गिरगिट चतुरिन्द्रिय है या पंचेन्द्रिय यह प्रश्न उपस्थित होता है । इसका कोई शास्त्रीय समाधान हमारे पास नहीं है, अतः हम विद्वज्जनों को विज्ञप्ति करते हैं कि उनकी नज़र में कोई शास्त्रीय समाधान हो तो वे मुझे अवश्य भेजें।
- मुनि नन्दीघोष विजय,लाडवाडा, खंभात
(तीर्थकर : नवम्बर, 87)