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Jainism : Through Science जो दक्षिण-पश्चिम अमरिका और उत्तर मेक्सिको में पायी जाती है, में केवल नारी जाति अर्थात मादा ही होती है । इन पर प्रा. डेविड फ्यूझ ने प्रयोग किये हैं । उन्होंने दो मादा छिपकलियों को एक पिंजरे में रखा । इनमें से एक छिपकली नर छिपकली की तरह व्यवहार करने वाली और दूसरी मादा छिपकली की तरह । मादा छिपकली की तरह व्यवहार करने वाली छिपकली से अंडे प्राप्त हुए; किन्तु दस-पन्द्रह दिनों के बाद चक्र बदल गया । जो छिपकली मादा-छिपकली की तरह व्यवहार करती थी, वह अब नर-छिपकली की तरह व्यवहार करने लगी और जो छिपकली नर की तरह व्यवहार करती थी, वह मादा-छिपकली की तरह व्यवहार करने लगी।
'संदेश' में दिये गये फोटोग्राफ्स में दोनों समलिंगी छिपकलियों की मैथुन की क्रिया बतायी गई है; अत: यह सिद्ध होता है कि छिपकली, जौ जैन जीव-विज्ञान के अनुसार चतुरिन्द्रिय है, उसमें भी मैथुन की क्रिया प्रजोत्पत्ति का कारण नहीं बनती है ।
पुद्गल-स्कन्ध के भेद डॉ. जैन ने एक और प्रश्न पुद्गल-स्कन्ध के छह भेदों के बारे में किया है । उनका कहना है कि वायु को जैन शास्त्रकारों ने सूक्ष्म-बादर श्रेणी में रखा है और प्रकाश को बादर-सूक्ष्म श्रेणी में अर्थात् प्रकाश से वायु को अधिक सूक्ष्म बताया गया है जबकि विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि वायु के कण से प्रकाश के कण अधिक सूक्ष्म हैं; अत: जैन दर्शन की मान्यता गलत है और स्कन्ध के भेदों को पुनः परिभाषित किया जाना चाहिये ।
इस जगह पुद्गल स्कन्ध के छह भेदों - 1. बादर-बादर, 2. बादर, 3. बादर-सूक्ष्म, 4. सूक्ष्म-बादर 5. सूक्ष्म 6. सूक्ष्म-सूक्ष्म में-से (1) बादर-बादर (2) बादर- (3) सूक्ष्म (4) सूक्ष्म-सूक्ष्म के बारे में सब सही लगता है; सिर्फ बादर-सूक्ष्म और सूक्ष्म-बादर पर ही हमें ध्यान केन्द्रित करना है । जैन शास्त्रों के कोई भी विधान नय-सापेक्ष ही हैं; अत: वे अन्य नयों की अपेक्षा ग़लत हो सकते हैं; किन्तु सर्वथा असत्य नहीं हैं ।
पुद्गल के उपर्युक्त छह भेदों में-से वायु को सूक्ष्म-बादर श्रेणी में और प्रकाश को बादरसूक्ष्म श्रेणी में रखा गया है। अतः उनमें शास्त्रकार का वचन सापेक्ष ही है । बहुत-कुछ विचार करने पर ऐसा लगता है कि शास्त्रकार ने वायु और प्रकाश को यथायोग्य श्रेणी में रखा है । यहाँ डॉ. जैन प्रकाशसे, प्रकाश-के-कण (फोटोन) ग्रहण करते हैं और वायु से हाइड्रोजन, ऑक्सीजन ऐसे वायु के कण (मोलीक्यूल) को ग्रहण करते हैं । वस्तुतः ऐसा है नहीं । यहाँ वायु से वायुकायिक जीवों का शरीर लेना चाहिये, उनमें हम वायु के कण (मोलीक्यूल) को ही वायुकायिक जीव का शरीर मान सकते हैं, किन्तु प्रकाश के बारे में ऐसा नहीं है । यहाँ प्रकाश से तेजस्कायिक जीवों का शरीर लेना चाहिये, क्योंकि वह शरीर औदारिक वर्गणा के स्कन्धों से निष्पन्न है । जैसे वायुकायिक जीवों का शरीर औदारिक वर्गणा के पुद्गल स्कन्धो से निष्पन है । इस तरह विचार करने से अग्नि स्वंय औदारिक वर्गणा में आ सकती है और उनमें से मुक्त होने वाले कण फोटोन पार्टिकल्स उन से भिन्न हो सकते हैं । उनका समावेश तैजस् वर्गणा में हो सकता है । यहाँ याद रखें कि तैजस्काय (अग्नि)और तैजस् वर्गणा के पुद्गल-स्कन्धों में बहुत