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जैनदर्शन : वैज्ञानिक दृष्टिसे
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3. मक्खन : मक्खन के बारे में घी के साथ ही विचार किया गया है अतः यहां पर इसकी पुनक्ति नहीं की जाती है ।
4. मधु (Honey) : जैन ग्रंथों में मधु तीन प्रकार का बताया गया है । 1. मधुमक्खी द्वारा इक्ट्ठा किया हुआ, 2. भंवरी - भंवरा द्वारा इकट्ठा किया गया, 3. तितली द्वारा इकट्ठा किया गया 26 वैसे मधु फूलों का रस ही है किन्तु उसे प्राप्त करने में मधुमक्खी आदि असंख्य जीवों की हत्या करनी आवश्यक है । अतः जीव हिंसा दृष्टि से इसका इस्तेमाल प्रतिबंधित है तथा मधु में मधुमक्खियाँ आदि के मुंह का रस भी सम्मिलित होने से उसमें उसके ही वर्णवाले असंख्य जीवों की उत्पत्ति होती है । अतः वह हमारे मन में विकृत्ति लाने में बहुत ही समर्थ होने से उसका शास्त्रकारों ने निषेध किया है ।
मधु, मक्खन, मद्य और मांस के बारे में वि. सं. 1549 में लिखित 'आनंद सुंदर' नामक दशश्रावक चरित्र में बताया है कि:
मज्जे महुम्मि मसंमि नवणीयंमि चउत्थए । उप्पज्जंति अणंता तव्वन्ना तत्थ जंतुणो ॥ 903 ॥ अमासु य पक्कासु य विपच्चमाणासु मंसपेसीसु । सययं चियमुववाओ भणियो य निगोय जीवाणं ॥ 904 127
अर्थ : मद्य, मधु, मांस और मक्खन में तद्वर्ण के अनंत अनंत जीव उत्पन्न होते हैं । कच्चे, पक्के और पकाते हुए मांस की पेशी (Tissues) में अविरत अनंत अनंत जीवों की कालोनी स्वरूप निगोद के जीवों की उत्पत्ति होती रहती है ।
इस प्रकार जैन ग्रंथों के आधार पर वैज्ञानिक दृष्टि कोण से विगइ और महाविगइ का यत्किंचित् स्वरूप बताया गया है । आशा है कि इसे पढकर, समझकर श्रावक लोग जैन-जैनेतर समाज में श्रावकत्व की गरिमा / प्रतिभा को अवश्य उपर उठायेंगे ।
टिप्पणियाँ :
1. डॉ. नेमीचंद जैन, 'तीर्थंकर', मई 1987 पृ. 5.
2.3,4,5,7,11,12,14,19,20,21,23,26.
प्रवचन सारोद्धार - 8, प्रत्याख्यान द्वार, गाथा - 217 से 235 और उसकी संस्कृत टीका ।
6,8, 13, 15, 16, 17, 18,
Role of vegetarian Diet in Health And Disease, Pg, 5-6-76-85-86. 9, 10 तीर्थंकर, सितंबर 1989 पृ. 29.
22, 24, 25 मांसभक्षण-दूषणाष्टकम्, मद्यपानदूषणाष्टकम् अष्टकप्रकरणम् कर्ता: आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी ।
27. 'आनंद सुंदर' प्रथमाधिकार श्लोक = 903, 904 1
( पर्वप्रज्ञा 1991 )
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