Book Title: Jain Darshan Vaigyanik Drushtie
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 117
________________ 18 Jainism : Through Science होना चाहिये। यदि आप समझते हैं कि जैनधर्म का किला इसी पर टिका है तो वह दिन दूर नहीं जब कि वह ढह जाएगा। - गणेश ललवानी (तीर्थकर : जुलाई-अगस्त, 87 ) 2.(ब) गणेश ललवानी का खत : जुलाई-अगस्त '87 जुलाई-अगस्त '87 के आचार्य लघुविशेषांक' में श्री गणेश ललवानी का 'खत: जो अन्तिम नहीं है' पढ़ा । पत्र से एक बात स्पष्ट होती है कि आजकल अधिकांश युवक वर्ग हमारे साधुसंतों से दूर भाग रहा है, जिसका सब-से-बड़ा कारण यही है कि मर्यादित साधु-साध्वियों को छोड़ कर, बहुत से साधु-साध्वी अपने पास आने वाले श्रावक-श्राविका-वर्ग से ऐसी सौगंधे लेने की अपेक्षा रखते हैं जो आगे चलकर कदाग्रह में रूपान्तरित हो जाती हैं । ___धर्म कोई ऐसी चीज़ नहीं है, जो ज़बर्दस्ती करायी जाए । धर्म को आत्मा में-से स्वयं प्रकट होना चाहिये; इसलिए हमारे जैसे साधु-साध्वी को अपने पास आने वाले श्रावक-वर्ग से सौगंध की कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिये; किन्तु उन लोगों को प्रेम से समझाना चाहिये । वैज्ञानिक तरीके से उनके सब प्रश्नों का समाधान करना चाहिये, बाद में उनकी इच्छा हो तो वे स्वयं सौगंध लें, किन्तु दुःखद यह है कि अधिकांश साधु-साध्वी हमारे युवक वर्ग के प्रश्नों का समाधान देने में समर्थ नहीं हो पाते; अत: उनमें स्वभावतः ऐसा कदाग्रह बन जाता है । श्री गणेश ललवानी ने क्रोधादि, कषाय, मोह, आलस्य आदि छुड़वाने का अनुरोध किया है । उनकी बात सही है; किन्तु आहार-शुद्धि ही आचार-शुद्धि ला सकती है; अतः आहार-शुद्धि अत्यावश्यक है । आलू-मूली आदि ज़मीकंद होने से अनन्तकाय हैं, अतः उनका त्याग करना श्रेष्ठ है । उनका कहना है कि आलू का नाम हमारे पुराने शास्त्रों में नहीं आ सकता; क्योंकि आलू भारत की उपज़ नहीं है । सर वॉल्टर रयाले इसे ईस्वी सन् 1586 में दक्षिण अमेरिका (ब्राझिल) से विलायत लाये । बाद में ई. स. 1615 के आस-पास वह भारत में आया; अतः पुराने शास्त्रों में उसका जिक्र असंभव है । इस आधार पर वे कहते हैं कि आलू अनन्तकायिक जीव है' ऐसा कथन केवली या सर्वज्ञ का नहीं है बल्कि किसी छद्मस्थ का फतवा है; किन्तु उनकी यह बात ठीक नहीं है। शास्त्रों में सब प्रकार के अनन्तकाय आदि वनस्पति और प्राणियों का जिक्र संभव नहीं है; किन्तु अनन्तकाय के लक्षण ही शास्त्र में आते हैं । इन्हीं लक्षणों के आधार पर ही हमारे प्राचीन आचार्यों ने आलू आदि को अनन्तकाय बताया है । टमाटर (टॉमेटो) सफरज़न (एपिल) आदि भी भारत की उपज नहीं है और शास्त्र में कहीं भी उनका जिक्र नहीं आता, तथापि हमारे पश्चात्कालीन शास्त्रकारों ने इन चीजों का निषेध नहीं किया; क्योंकि उनमें अनन्तकाय के लक्षण

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