Book Title: Jain Darshan Vaigyanik Drushtie
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 135
________________ 6. जल : सचित्त और अचित्त जैनधर्म के सुस्थापित नियमों में एक नियम यह है कि हर व्यक्ति को अचित्त (प्रासुक/ उबाला हुआ) जल पीना चाहिये और उसमें भी जो गृहस्थ तपश्चर्या कर रहा है उसके लिए तथा जैन साधु-साध्वी समुदाय के लिए, इस नियम में अन्य कोई विकल्प नहीं है । जैन जीवविज्ञान के अनुसार जल स्वयं सचित्त/सजीव है । वर्तमान में किसी जैन साधु-साध्वी या जैनदर्शन के निष्णात/तत्त्वज्ञ या सामान्य विज्ञानविद् से पूछा जाए कि 'जैनधर्म में जल को उबाल कर ही पीने का विधान क्यों हैं तो वे (सभी) कहते है कि कच्चा पानी स्वयं सजीव है और उसमें भिन्न-भिन्न प्रकार के असंख्य जीवाणु है। जिनसे शरीर में बहुतेरे रोग उत्पन्न होने की आशंकाएँ है और सचित्त पानी में उन जीवाणुओं की उत्पत्ति निरन्तर जारी रहती है जो पानी के उबाले जाने के बाद बंद हो जाती है, अतः हमें जल उबाल कर पीना चाहिये । यहाँ प्रश्न यही पूछा जाता है कि जैनदर्शन के अनुसार हमारे लिए किसी भी प्राणी या व्यक्ति को वंशवृद्धि करने की या वंशवृद्धि बंद करने की प्रेरणा देना उपयुक्त नहीं है, उसमें भी दोष की पूर्णतः संभावना है । हमें तो केवल दृष्टा बन कर औदासीन्य भाव से सब कुछ देखते ही रहना है, आत्मा को किसी भी प्रवृत्ति के साथ जोड़ना/युक्त करना उचित नहीं है, फिर किसी भी जीव की वंशवृद्धि रोकने का हमें क्या अधिकार है ? इस प्रश्न का उत्तर हम सब के लिए मुश्किल है, अर्थात् पानी उबालना, वह भी हमारे लिए हिंसा की प्रवृत्ति ही है, चाहे उसे हम अपने लिए उबालें या किसी अन्य के लिए । __ अत: 'पानी उबाल कर ही क्यों पीना चाहिये' यह प्रश्न यथावत् ही रहता है । उक्त प्रश्न का उत्तर वैज्ञानिक छानबीन के धरातल पर इस तरह दिया जा सकता है । विज्ञान के सिद्धान्तानुसार प्रत्येक प्रवाही में धनविद्युद्भारान्वित अणु (पॉजीटिव्हली चार्ल्ड पार्टिकल्स कॉल्ड केटऑयन्स) और ऋणविद्युद्भारान्वित अणु (निगेटिव्हली चार्ल्ड पार्टिकल्स कॉल्ड एनऑयन्स) होते हैं, और कुए, तालाब, नदी, बारिश आदि के पानी में क्षार होते हैं, साथ-साथ उसमें ऋणविद्युद्भारान्वित अणु ज्यादा प्रमाण में रहते हैं । इस ऋण विद्युद्भारान्वित अणु-युक्त पानी पीने से शरीर में बहुत ताज़गी/स्फूर्ति का अनुभव होता है । यह कभी-कभी विकार भी पैदा करता है, किन्तु जब पानी को गर्म किया जाता है तब वह अचित्त तो हो ही जाता है, साथ ही उसमें समाविष्ट ऋणविद्युद्भारान्वित अणु तटस्थ यानी वीजभाररहित हो जाते हैं; परिणामत: गर्म किया हुआ पानी शारीरिक एवं मानसिक विकृतियाँ उत्पन्न नहीं कर पाता है;

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