Book Title: Jain Darshan Vaigyanik Drushtie
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 154
________________ जैनदर्शन : वैज्ञानिक दृष्टिसे भी उसकी गुणवत्ता बढिया - उत्तम है । अतः वह तुरंत पूर्णतया खून में मिल जाता है ।" 55 2. दही : दूध में से दही बनाया जाता है । जैन ग्रंथो में दही के चार प्रकार बताये हैं । गाय, भैंस, बकरी और भेडिया के दूध को जामन देने पर दही बन जाता है। ऊंटनी के दूध में से दही नहीं बनता है । अत: दूध के पांच प्रकार होने पर भी दही के सिर्फ चार प्रकार ही हैं ।' दही के भक्ष्याभक्ष्य के बारे में समय समय पर प्रश्न उपस्थित होते रहे हैं । किसी का कहना है कि जब दूध बिगड जाता है, उसका रस चलित हो जाता है तब दही बनता है । तो किसी का कहना है कि बिना बैक्टीरिया दही बनता ही नहीं है । प्रयोगशाला में दूर्बिन - माइक्रोस्कोप द्वारा दही में बहुत से सजीव बैक्टीरिया देखे जा चुके हैं, अत: दही अहिंसा - हिंसा की दृष्टि से त्याज्य ही है । जो व्यक्ति ऐसा मानते हैं कि दही चलित रस या बिगडा हुआ दूध ही है, तो उनकी यह मान्यता नितांत भ्रम ही है। दूध का बिगड जाना और दही का जमाना, दोनों प्रक्रियाओं में काफी अंतर है । हवामान या वातावरण के तापमान के कारण, दूध में बिना दही डाले जब दूध बिगड जाता है, तो उनके वर्ण, गंध, रस आदि दही के सदृश होते ही नहीं । उसमें बैक्टीरिया के खिलाफ अन्य प्रकार के जीवाणु पैदा होते है, जब कि दूध में दही डालने से दही के बैक्टीरिया, जिसे लैक्टोबेसिलस कहते है, वे दूध को दही में रुपान्तरित करते हैं । दूध में जो लैक्टोज नामक कार्बोहाइड्रेट है, उसे अपने शरीर में उत्पन्न लैक्टोज नामक पाचक रस लैक्टीक एसीड में परिवर्तित करता है । जिन के शरीर में लैक्टोज पैदा नहीं होता है या कम पैदा होता है उनके लिए दूध के बजाय दही खाना उत्तम है । दूध पचने में भारी है जब की दही हल्का है । अतः दही चलितरस या बिगडा हुआ दूध ही है ऐसा कहना अपनी बुद्धि का प्रदर्शन ही है । आम तौर से यह मान्यता प्रचलित है कि दही बिना बैक्टीरिया के जमता नहीं है अतः दहीं नहीं खाना चाहिए; किन्तु बैक्टीरिया कई तरह के होते हैं । माइक्रोबायोलोजी के अध्ययन से हमें विदित होता है कि कुछ बैक्टीरिया जो कभी कभी दूध आदि में पाये जाते है वे किसी भी उपाय से मरते नहीं हैं, चाहे दूध आदि को आधे घंटे तक ही क्यों न उबाला जाए क्योंकि इस प्रकार के बैक्टीरिया अपने पर्यावरण का तापमान बढते ही अपने चारों ओर एक सुरक्षा कवच बना लेते हैं, और जब तक तापमान अनुकूल नहीं हो जाता तब तक कवच में सुषुप्त बने रहते हैं । दूध से दही बनानेवाले बैक्टीरिया भी विशिष्ट प्रकार के होते हैं । हमारे शरीर में भी बहुत से बैक्टीरिया और जीवाणु - कीटाणु है । दही के बजाय दूध लेने पर भी वही दूध जब पेट में जाता है, तब वहाँ भी हाइड्रोक्लोरिक एसीड से युक्त होने से दही में रूपान्तरित हो जाता है अतः हमें मानना चाहिए कि दही में बैक्टीरिया होने पर भी उसका भोजन में उपयोग किया जा सकता है, क्योंकि उन्हें अपने जीवन के लिए अनुकूल पर्यावरण हमारे शरीर में भी प्राप्त है, अतः उनकी मृत्यु नहीं होती, इसलिए दही का निषेध जैन शास्त्रों में नहीं किया गया है, किन्तु वह दही दो रात बीत जाने पर अभक्ष्य हो जाता है, क्योंकि उसमें दही बनानेवाले बैक्टीरिया की वृद्धि अत्यधिक मात्रा में हो जाती है और अन्य प्रकार के जीवाणु कीटाणुओं की उत्पत्ति की भी आशंका बन जाती है ।

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