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जैनदर्शन : वैज्ञानिक दृष्टिसे
अतः साधु-साध्वी और तपस्वी गृहस्थ- श्रावकों के लिए गर्म पानी ही उचित है ।
इस बात के वैज्ञानिक सुबूत के रूप में मैं बताना चाहूँगा कि अमरिका आदि विकसित देशों में अभी-अभी वातानुकूलित (एअरकण्डीशन्ड) ऑफिस आदि स्थानों में वातावरण को धनवीजभारान्वित- अणु-रहित, या ऋण - बीज-भारान्वित अणुयुक्त अर्थात् आयोनाइज्ड करने के लिए विशिष्ट उपकरण बाज़ार में आये हैं, जिनकी खपत भी बहुत हुई है । इसका मुख्य कारण यह है कि वातानुकूलित स्थानों में जहाँ ठंड़ी हवा होती है, वहाँ तनिक भी गर्मी नहीं लगती तथापि वहाँ बैठ कर कर्मचारीगण का काम करने में मन नहीं लगता, शारीरिक-मानसिक जड़ता आ जाती है; इस तरह जितना चाहिये उतना काम नहीं हो पाता है । इस सिलसिले में हुए अनुसंधान से पता चला है कि वातानुकूलित वातावरण में धनवीजभारान्वित अणु का प्रमाण ज्यादातर होता है, यदि उसकी संख्या कम कर दी जाए और साथ-साथ ऋणवीजभारान्वितअणुओं का प्रमाण बढ़ाया जाए तो वातावरण ताज़गीयुक्त और स्फूर्तिदायक बन जाता है । इस खोज़ के आधार पर ही हवा को ऋणवीजभारान्वित करने के लिए आयोनाइजेशन उपकरण का इस्तेमाल बहुत प्रमाण में हो रहा है । इस मशीन से प्रति सेकण्ड अरबों ऋणवीजभारान्वित अणु पैदा करके बाहर फेंके जाते है । बारिश के दिनों में हम अनुभव करते हैं कि उन दिनों में केवल आहार- पानी करके सो जाने की ही वृत्ति रहती है, किसी भी कार्य में मन नहीं लगता है; क्योंकि उस समय वातावरण में धनवीजभारान्वित अणुओं की संख्या अधिक रहती हैं; अतः गर्म पानी पीना मात्र जीवदया और आरोग्य विज्ञान की दृष्टि से ही नहीं, अपितु मन की प्रसन्नता एवं दुरस्ती के लिए भी जरूरी हैं । ऊपर जो भी कहा गया है वह पूरी तरह वैज्ञानिक है ।
- मुनि नंदीघोष विजय, गोधरा (तीर्थंकर, जन. फर. 90 )
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