Book Title: Jain Darshan Vaigyanik Drushtie
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 142
________________ जैनदर्शन : वैज्ञानिक दृष्टिसे 43 तपास-पंच नियुक्त किये जाते हैं और बाद में सरकारे में उनके तथ्यों की विचारणा के अलावा कुछ नहीं होता है; वैसी परिस्थिति हमारे सर्वेक्षण - प्रकोष्ठ की भी होगी । (7) समाज के एकीकरण और सामान्य भाई-चारे के बारे में आपका अनुभव सही है । सामान्य लोगों को धार्मिक/ दार्शनिक मतान्तर में कोई रस नहीं है; किन्तु कुछेक ऐसे व्यक्तियों में धार्मिक जुनुन, मतान्धता और ममत्व इतनी अधिक मात्रा में है कि वे लोग स्याद्वाद के मर्म/रहस्य को बिना समझे अन्य के मतों को झूठा कहते हैं; किन्तु मेरा अनुभव है कि बहुत-सी दार्शनिक / धार्मिक जटिलताएँ स्याद्वाद को ले कर सुलझायी जा सकती हैं; लेकिन जब तक समाज के . अधिकांश वर्ग पर ऐसे स्वमताग्रही और मतान्ध लोगों की पकड़ रहेगी तब तक आपकी / अपनी भावना सफल नहीं होगी । ऐसे लोग शास्त्र के नाम पर समाज में विसंवाद फैलाते हैं और उसी विसंवाद-की- अग्नि पर अपनी रोटी सेंकते हैं । हमें समाज को उनके चुंगल में से छुड़वाना है, या तो ऐसे लोगों के स्वमताग्रह और मतान्धत्व को ज्ञान दीपक से दूर करना है; बाकी सर्वसामान्य मुद्दे पर कोई विसंवाद नहीं हैं । आशा है आपकी सप्तसूत्री योजना के बारे में मेरी प्रतिक्रिया, या मेरे विचार आपको मालूम हो गये होंगे । आप मुझसे कैसे सहयोग की अपेक्षा रखते हैं वह मैं जानना चाहता हूँ तथा मेरे योग्य और मुझसे संभव होगा वह, सभी कार्य मैं करूँगा । (तीर्थकर: मार्च - एप्रिल, 91 )

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