Book Title: Jain Darshan Vaigyanik Drushtie
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 129
________________ 30 Jainism : Through Science की मर्यादा है । तीसरे दिन दही अभक्ष्य हो जाता है । ___ छाछ के बारे में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संप्रदाय के साधुओं की मर्यादा / आचार यह है कि बिलोते समय यदि छाछ में कच्चा पानी डाला हो और मक्खन पूर्णतया निकाल लिया हो तो वह छाछ प्रासुक । अचित हो जाती है। अत: वह तुरन्त ली जाती है और उस छाछ की मर्यादा दो दिन की है । यद्यपि वर्तमान में इस तरह दूसरे दिन, कोई भी साधु छाछ लेते नहीं हैं; परन्तु परम्परा में इस प्रकार सुना है । इसे शास्त्र का आधार तो होगा ही, किन्तु अभी वह मेरे पास उपलब्ध नहीं है। आगे आपने बताया कि "यदि छाछ बिलोने के बाद उसमें पानी डाला जाए तो उस छाछ की मर्यादा सिर्फ 48 मिनिट है"; किन्तु श्वे. मू. साधुओं की परम्परा के अनुसार इस तरह छाछ बिलोने के बाद यदि उसमें कच्चा पानी डाला जाए तो 48 मिनिट तक वह सचित रहती है, बाद में अचित हो जाती है और साधु-साध्वी इसे ग्रहण करते है । यह प्रथा वर्तमान में भी कहींकहीं प्रचलित है। __ पृ. 74 पर आपने वर्षा के जल को प्रासुक बताया है; किन्तु बारहवीं शताब्दी में श्री शान्तिसूरिजी द्वारा रचे गये 'जीव विचार प्रकरण' में और आगमिक साहित्य में वर्षा के जल को सचित अप्काय बताया है । कभी-कभी वर्षा के जल में मछलियाँ भी होती हैं, बर्फ की भी वर्षा होती है; अतः उसे प्रासुफ मानना योग्य नहीं है । 'विदल' के बारे में (पृ. 78 पर) आपने बताया कि 'विदल या बिदल संस्कृत के 'द्विदल' से बना शब्द है । जिसके दो फाड़ होते हैं, ऐसे अन्नादिक पदार्थ द्विदल कहलाते हैं । दालें, तिल, मूंगफली, चारौली, बादम, तुरई, भिण्डी आदि इस वर्ग में आते है । ऐसे अन्नादिक जब दूध, दही, छाछ, आदि में डाले या मिलाये जाते हैं, तब उनमें असंख्य जीवों की उत्पत्ति हो जाती है; अतः इस कसौटी पर इस तरह के तमाम पदार्थ अभक्ष्य ठहरते हैं ।' 'विदल' शब्द का अर्थ और व्युत्पत्ति आपने बतायी है वह सही है; किन्तु जैन शास्त्रों में और परम्पराओं में 'विदल' का रूढ़ अर्थ यह है कि कठोल या द्विदल वनस्पति, जिसमें से तेल निकाला नहीं जा सकता। यहाँ पर इतनी स्पष्टता करनी आवश्यक है कि उड़द, मूंग, चोला, चने, मैथी इत्यादि, जिसमेंसे तेल निकलता नहीं है, वह कच्चे गोरस दूध-दही के साथ अभक्ष्य है किन्तु तिल, मूंगफली, चारोली, बादाम, इत्यादि द्विदल वनस्पति, जिसमें से तेल निकाला जाता है, वह कच्चे दूध-दही के साथ भक्ष्य ही है, और दही-बड़ा यदि गर्म किये हुए दही में बनाया हो तो वह भक्ष्य ही है । विदल के बारे में गाथाएं इस प्रकार हैं - जंमिउ पिलिजंते नेहो नहु होई बिंति तं विदलं । विदले वि हु उप्पन्ने नेहजुअंहोइनो विदलं ॥1॥ मुग्गासाइपभिई विदलं कच्चमि गोरसे पडइ । ता तसजीवुप्पत्ति भणंति दहिए वि तिदिणुवरि ॥2॥विदलं जिमिउं पच्छा पत्तं मुहं च दो वि थोवेजा । अहवा

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