Book Title: Jain Darshan Vaigyanik Drushtie
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 116
________________ 17 जैनदर्शन :वैज्ञानिक दृष्टिसे देते वे ? बस, निरुत्तर हो गये। सम्पादकजी, इस छोड़ने-छुड़ाने की बात में पहला टारगेट है आलू । मानो आलू खाने से जैनधर्म का किला ही ढह जाएगा; और न खाने से अटूट रहेगा । मेरे एक मित्र अक्सर कहा करते हैं - मेरे घर में तो आलू का प्रवेश ही नहीं होता मानो आलू कोई मांस-मछली जैसा खाद्य है । बड़ी अजीब-सी लगती है बात । आखिर आलू वनस्पति ही तो है । मैं अपने उन मित्र को चेतावनी देना चाहता हूँ कि आपके घर में अवश्य ही आलू का प्रवेश नहीं होता होगा पर आपकी गली में तो हो चुका है। आखिर आलू के प्रति इस रुख का कारण क्या है ? प्रत्युत्तर मिलता है - इसमें अनन्तकायिक जीव हैं। प्रश्न : यह किसने कहा? उत्तर : शास्त्रों में आता है। प्रश्न : किस शास्त्र में ? उत्तर : हमारे पुराने शास्त्रों में । किन्तु हमारे पुराने शास्त्रों में आलू का नाम आ ही नहीं सकता । कारण, आलू भारत की उपज नहीं है, यद्यपि आज आलू की उपज सारी दुनिया में चावल से दूनी, गेहुँ से तिगुनी है । सर वॉल्टर रयाले इसे ईस्वी सन् 1586 में दक्षिण अमरिका से विलायत लाये थे । भारत में यह आया है 1615 ई. के आसपास; अत: पुराने शास्त्रों में इसका जिक्र आना असंभव है । स्पष्ट है आलू में अनन्तकायिक जीव हैं, यह किसी केवली या सर्वज्ञ का कथन नहीं है यह तो किसी छद्मस्थ का फ़तवा है; एतदर्थ ग़लत भी हो सकता है । इस फ़तवे का कारण मेरे ख्याल से यही रहा है अनजाने फल का जो विरोध होता है यह वही विरोध है और इस विरोध को चलाया गया है धर्म के नाम पर । इस पर छान-बीन होनी चाहिये कि क्या आलू में अनन्तकायिक जीव रहते हैं ? मेरे एक अन्य मित्र ने कहा कि आलू में शर्करा अधिक होती है, जिससे डायबिटीज़ (मधुमेह) आदि व्याधियाँ हो सकती है । प्रत्युत्तर यह है कि डायबिटीज होने पर जो खाना निषिद्ध होता है - जैसे चावल, गेहूँ आदि वे क्या अभक्ष्य हो जाएंगे? वास्तव में हमारा भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार अधिकांशतः भ्रमित है । हम जमीकंद नहीं खा सकते हैं तो सौठ-हल्दी कैसे खा सकते हैं ? भले ही सुखा कर क्यों न खायें ? जबकि आलू तो जमीकंद है ही नहीं । यह तो एक पौधे पर उत्पन्न होता है, जिसे मिट्टी से मात्र ढंका जाता है । बहुबीज में आते है यदि बैंगन, अंजीर आदि तो तुरई, खीरा भी सहज ही बहुबीजी हैं । भक्ष्य-अभक्ष्य का यह निरूपण हुआ है छद्मस्थ द्वारा । उन्होंने अपने विचार थोप दिये हैं हमारे ऊपर । अब तो इस वैज्ञानिक युग में भक्ष्याभक्ष्य का नये सिरे से, वैज्ञानिक ढंग से विचार

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