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Jainism Through Science
पुद्गल द्रव्य के छह भेद हैं- (1) सूक्ष्म सूक्ष्म, (2) सूक्ष्म, (3) सूक्ष्म बादर, (4) बादर सूक्ष्म (5) बादर, (6) बादर बादर । याकिनी महत्तरासुनू आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी ने, दशवैकालिक' सूत्र की वृत्ति में जीवाभिगम सूत्र के आधार पर बताया है कि पुद्गल द्रव्य का प्रत्येक परमाणु जिसका स्वतन्त्र अस्तित्व है उसका सूक्ष्म सूक्ष्म वर्ग में समावेश होता है, दो-दो परमाणुओं के पुद्गल स्कन्धों से लेकर सूक्ष्म परिणाम-युक्त अनन्त परमाणुओं के पुद्गल स्कन्धों का समावेश सूक्ष्म नामक द्वितीय वर्ग में होता है, सूक्ष्म बादर श्रेणी में गन्ध (सुगन्ध और दुर्गन्ध) के परमाणु पुद्गल स्कन्धों को समाविष्ट किये गये हैं ।
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वायुकाय के जीवों का शरीर बादर सूक्ष्म है । जल के जीवों के शरीर को बादर श्रेणी में रखा गया है हालाँकि अग्निकाय, वनस्पतिकाय, पृथ्वीकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरीन्द्रिय आदि अन्य सब त्रस जीवों के शरीर को 'बादर बादर' माना गया है । 'तत्त्वार्थसूत्र' की वृत्ति में श्रीसिद्धसेन गणि ने वायुकाय को तेजोकाय (अग्नि) से अधिक सूक्ष्म बताया है । कारण बताते वे कहते है कि तेजोकाय प्रत्यक्ष हो सकते हैं, वायुकाय प्रत्यक्ष नहीं हो सकते हैं ।
दूसरी ओर आधुनिक विज्ञान स्पष्ट रूप में बताता है कि प्रकाश के कण (पार्टिकल्स), जिन्हें 'फोटोन' कहा जाता है, इलेक्ट्रोन की तरह बहुत सूक्ष्म हैं; हालाँकि वायु, जैसा कि हाइड्रोजन, ऑक्सीजन आदि उनसे बहुत कुछ मात्रा में स्थूल हैं, क्योंकि हाइड्रोजन के एक अणु में एक इलेक्ट्रॉन, एक प्रोटोन और एक न्यूट्रोन होते हैं। ऑक्सीजन के एक अणु में 16 इलेक्ट्रॉन, 16 प्रोटोन और 16 न्यूट्रोन होते हैं और वायु सदैव दो-दो अणुओं के युग्म में ही उपलब्ध होती है, जिसे वैज्ञानिक परिभाषा में 'मोलीक्यूल' कहा जाता है ।
इस दृष्टि से प्रकाश के कण (फोटोन) को अग्निकाय नहीं कहा जा सकता; किन्तु प्रकाश उत्पन्न करने वाले पदार्थ, उनकी ज्योति आदि को अग्निकाय मानना चाहिये; अतः बिजली के बल्व में जब हम विद्युत् प्रवाह प्रसारित करते हैं, तब टंगस्टन धातु के तार गर्म हो कर प्रकाशित हो उठते हैं, उसी समय उन तारों में अग्नि की उत्पत्ति होती है; अतः उन गर्म तारों को ही सजीव कहा जाता है, ठीक उसी तरह प्रज्वलित अंगारे, अग्नि की ज्वाला, ज्योति, आकाश में कौंधती बिजली, राख में ढँके अग्नि- कण इत्यादि को ही अग्निकाय कहा जाता है, किन्तु उनमें से प्रकट होते प्रकाश को अग्निकाय नहीं कहा जा सकता ।
'आचारांग' के प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन के चतुर्थ उद्देशक की नियुक्ति में बादर अग्नि के पाँच प्रकार बताये हैं
(1) अंगार, कोयले आदि; (2) विद्युत् आदि अग्नि; (3) ज्वाला अर्थात् अग्नि उत्पन्न करने वाले पदार्थ से विच्छिन्न ज्वाला; (4) अग्नि उत्पन्न करने वाले पदार्थ से संलग्न ज्वाला, जिसे अर्चिस् कहा जाता है; और (5) राख (रक्षा) में ढँके हुए अग्नि-के-कण जिसे मुर्मर कहा जाता है ।