Book Title: Jain Darshan Vaigyanik Drushtie
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 120
________________ 3. प्रकाश : सजीव या निर्जीव ? भगवान् महावीर को हुए आज लगभग ढाई हजार वर्ष बीत चुके हैं, तथापि उनका शासन आज भी अविच्छिन्न रूप में अजेय है । उन्होंने केवलज्ञान से भौतिकजगत् का जो स्वरूप प्रत्यक्ष किया, उसे अपने धर्मोपदेशों में भलीभांति समझाया और आज भी उनके बताये हुए सिद्धान्त विज्ञान की कसौटी पर खरे उतर रहे हैं। __जीव-विज्ञान के क्षेत्र में, जैन धर्म-ग्रंथों या जैनदर्शन का जो अनुपम योगदान है उसे स्वीकार किये बगैर हम चल नहीं सकते। जैन दार्शनिक परम्परा के अनुसार, प्राणियों और वनस्पति के अतिरिक्त पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु में भी जीव या आत्मा है । उन सबमें, मात्र तर्क के आधार पर नहीं, वरन् वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार प्रायोगिक स्तर पर जीवत्व की सिद्धि करना अत्यन्त आवश्यक है । युग की इस मांग को तत्काल पूरी करने की जिम्मेदारी हम सबकी है । __ जैन समाज में, खास तौर पर साधु समाज में, 'प्रकाश' के बारे में पिछली कुछेक सदियों में कतिपय भ्रान्तियाँ प्रचलित हुई हैं । उन मान्यताओं को शास्त्र का प्रबल समर्थन नहीं है । आमतौर पर जैन उपाश्रयों और स्थानकों में दीपक (लैम्प) का उपयोग नहीं होता है; क्योंकि जैन साधु-समाज के लिए अहिंसा-का-पालन अत्यन्त आवश्यक है और जैन दार्शनिक परम्परा के अनुसार अग्नि में भी आत्मा होती हैं । आज श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन साधु-समाज में ऐसा आचार है कि रात्रि में यदि दीपक (लैम्प) का प्रकाश हो तो, उस प्रकाश में-से पसार होने के समय साधु-साध्वी अपने शरीर को गर्म वस्त्र (ऊनी) या कम्बल से लपेट लेते हैं । इस परम्परा, प्रथा या आचार का कारण पूछने पर बताया जाता है कि प्रकाश तेजोकाय है और अपने शरीर पर पड़ने के कारण उसकी मृत्यु हो जाती है; अतः दीपक, चाहे वह मोमबत्ती का हो या कैरोसिन का या तेल का, घी का या बिजली का हो उसका प्रकाश अपने शरीर पर न पड़े, इसलिए गर्म कम्बल का उपयोग किया जाता है । सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारा इत्यादि के प्रकाश को निर्जीव माना गया है । ___ दूसरी ओर आज विज्ञान में बहुत कुछ खोजें हुई हैं जिनके आधार पर कुछ लोग बिजली के लटू, लालटेन, मोमबत्ती इत्यादि के प्रकाश को निर्जीव मानते हैं, तो फिर वास्तविक स्थिति क्या है, इस पर जैन धर्म-शास्त्रों और आगमों के आधार पर विचार करना आवश्यक है। . जैन धर्मग्रन्थों के अनुसार द्रव्य के भिन्न-भिन्न वर्गीकरणों में से एक वर्गीकरण इस प्रकार है -

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