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Jainism Through Science जैन शास्त्रकारों ने अनन्तकाय वनस्पति का लक्षण अर्थात् पहचान ही यह बतायी है कि साधारण (अनन्तकाय) वनस्पति को छेदने पर, उसके व्यवस्थित टुकड़े होते हैं, उनमें तन्तु और ग्रन्थि आदि तथा उसके पर्ण में शिराएँ नहीं होती हैं। ज़मींकन्द वस्तुतः विज्ञान की परिभाषा में मूल का ही रूपान्तर (मॉडिफिकेशन ऑफ रूट) है; अत: ज़मींकन्द अन्दर से साफ-सुथरे होने से ही भक्ष्य नहीं बन जाते हैं ।
एक अन्य प्रश्न यह है कि क्या मूंगफली ज़मींकन्द में गिनी जाती है, या नहीं ? वस्तुत: मूंगफली ज़मीन के अन्दर होने पर भी ज़मींकन्द में नहीं गिनी जाती क्योंकि मूंगफली के ऊपर के छिलके तन्तु युक्त होते हैं । अन्य ज़मींकन्द की तरह मूंगफली का हर कोई अंग, नया छोड़ (पौधा) उत्पन्न करने में समर्थ नहीं है, या उसके टुकड़े भी नया पौधा उत्पन्न नहीं कर सकता; जबकि आलू आदि का कोई टुकडा नया पौधा उत्पन्न कर सकता है । इस तरह साधारण (अनन्तकाय) वनस्पतिकाय के कोई भी लक्षण मूंगफली में नहीं पाये जाते हैं, अतः मूंगफली भक्ष्य है ।
जीवों के भेद
डॉ. जैन ने जीवों के लिंग के बारे में प्रश्न उठाया है कि जैन शास्त्रों के अभिप्रायानुसार एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव नपुंसक होते हैं और उनका जन्म संमूर्च्छनरीति से होता है; किन्तु विज्ञान ने इसे गलत बताया है । विज्ञान ने यह बताया है कि चीटियाँ, मक्खियाँ - मधुमक्खियाँ आदि में रति क्रिया होती है और उनमें लिंगी प्रजनन होता है, उनमें नरमादा का भेद होता है । विज्ञान ने पेड़-पौधों में भी नर-मादा का भेद बताया है ।
डॉ. जैन का प्रश्न उपयुक्त है; लेकिन उनका उत्तर पाने के लिए हमें व्यवस्थित रूप से जैन शास्त्रों का परिशीलन तथा चिन्तन-मनन करना चाहिये । पहले तो जैन शास्त्रों में आये हुए परस्पर-विरोधी-वचनों का नय की दृष्टि से समन्वय करना होगा । दशपूर्वधर तत्त्वार्थ सूत्रकार वाचक उमास्वाति समग्र ब्रह्माण्ड के सभी जीवों का लिंग बताते हुए, तत्त्वार्थ सूत्र के दूसरे अध्याय में कहतें हैं कि 'नारकसंमूच्छिनो. नपुंसकानि ॥ 51 ॥ न देवाः ॥52॥' अर्थात् नारक योनि में उत्पन्न होने वाले जीव और सभी संमूच्छिम जीव नपुंसक होते हैं। देवता ( देव योनि) में कोई नपुंसक नहीं होता अर्थात् वहाँ देव (पुरुष) और देवी (स्त्री) दो ही प्रकार हैं । जो गर्भज, मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंच होते हैं, उनमें तीनों लिंग होते हैं ।
इसी 'तत्त्वार्थ सूत्र' में जन्म के तीन प्रकार बताये गये हैं - (1) संमूर्च्छनज (2) गर्भज (3) उपपात । देव और नारक सिर्फ उपपात पद्धति से ही जन्म लेते हैं । गर्भज जन्म के तीन प्रकार हैं - जरायुज, अण्डज और पोतज । मनुष्य, गाय, भैंस, घोड़ा, हिरण आदि जरायुज हैं । सर्प, कोयल, मत्स्य, कछुआ इत्यादि अण्डज हैं और लोमपक्षी हंस, शुक, कबूतर, बाज़, कौआ, मयूर आदि भी अण्डज होते हैं । नकुल, शश, मूषक इत्यादि और जलूका, वल्गुलि, चिमगादड़, भारण्ड इत्यादि चर्मपक्षी पोतज हैं, ये सब पंचेन्द्रिय ही हैं । इनके अलावा एकेन्द्रिय से ले कर चतुरिन्द्रिय तक सभी संमूच्छिम हैं ।
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