Book Title: Jain Darshan Vaigyanik Drushtie
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 110
________________ जैनदर्शन : वैज्ञानिक दृष्टिसे 11 1 जीव होते तो वे जीव सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से अवश्य दिखायी पड़ने चाहिये, जैसे दहीमें बैक्टीरिया; किन्तु उनकी यह मान्यता गलत है । बैक्टीरिया आदि द्वीन्द्रिय जीव होने से भिन्न रूप से दहीं में गतिमान अवस्था में दिखायी पड़ते हैं; जबकि वनस्पति स्वयं सजीव है, अत: उसमें सूक्ष्मदर्शी से जीव को देखने का प्रश्न ही अस्थानापन्न है । वनस्पति के मुख्यतया दो भेद हैं- एक है प्रत्येक वनस्पतिकाय और दूसरा है साधारण वनस्पतिकाय । प्रत्येक वनस्पतिकाय में हर आत्मा का अपने-अपने स्वतन्त्र अस्तित्व का बोधक स्वतन्त्र शरीर होता है; और साधारण वनस्पतिकाय में अनन्त जीवों का शरीर एक ही होता है, अर्थात् एक ही शरीर में अनन्त जीव होते हैं । हम जो फल, फूल, पत्ते, मूल आदि देखते हैं, वह तो वनस्पति जीवों का शरीर है। क्या आत्मा, शरीर से भिन्न रूप से सूक्ष्मदर्शी से दिखायी पड़ती है ? आधुनिक विज्ञान की मान्यता है कि प्रत्येक सजीव पदार्थ में उनके शरीर का मूलभूत इकाई कोष (Cell) है। अरबों की संख्या में ऐसे कोष इकट्ठा होकर प्रत्येक प्राणी या सजीव पदार्थ का शरीर बनाते हैं । यह हरेक कोष भी सजीव होता है; अत: आलू आदि के सभी कोष, सजीव होने पर भी, प्रत्येक कोष में अनन्त जीव- राशि होती है, अतः ज़मींकन्द को अभक्ष्य माना गया है । उनका दूसरा प्रश्न यह है कि जहाँ जीव- राशि है वहाँ यदि उसकी अनुकूल परिस्थिति समाप्त कर दें तो वह जीव-राशि मर जाएगी और जब जीव मरेंगे तब उनमें (ज़मींकन्दों में) सड़नगलन भी होगी और वह सब्जी अधिक समय तक टिक नहीं सकेगी; किन्तु ज़मींकन्द बहुत समय तक अच्छे बने रहते हैं । यदि उनमें जीव हों तो ज़मीन के अन्दर ही वे सुरक्षित रह सकते हैं, उन्हें मिट्टी से बाहर निकालने पर जीव समाप्त हो जाएँगे, और सड़न - गलन प्रारम्भ हो जाएगी, किन्तु डॉ. जैन की ये सब मान्यताएँ बिल्कुल गलत हैं। जमींकन्दों को ज़मीन से बाहर निकालने के बाद वे अजीव नहीं होते हैं; ज़मीन से बाहर निकालने के बाद बहुत लम्बे समय तक वे सजीव ही रहते हैं । उन्हें निर्जीव करने का सिर्फ एक ही उपाय है परकाय शस्त्र से घात अर्थात् छुरी से टुकड़े करना या अग्नि से पकाना आदि । दूसरी बात यह कि जीव-राशि समाप्त होने के बाद उसमें सड़न- गलन होनी ही चाहिये ऐसा कोई नियम नहीं हैं । आधुनिक युग में और प्राचीन मिस्र (इजिप्ट) में मृतक आदि को लम्बे समय तक रखने के लिए शुष्कीकरण (डीहाइड्रेशन) की पद्धति अपनायी जाती है (थी) और प्राचीन मिस्र के पिरामिड़ों से प्राप्त ममी इस बात को सिद्ध करती है; अतः ज़मींकन्दों में जीवराशि समाप्त होने पर यदि उन्हें शुष्क बनाया जाता है, तो उनमें सड़न-गलन नहीं होती है; जैसेअदरक । अदरक में जीवराशि समाप्त होने के बाद, उसका शुष्कीकरण अपने-आप हो जाता है; किन्तु आलू आदि में शुष्कीकरण अपने-आप नहीं होता । उन्हें छुरी आदि से काटने के बाद ही उनका शुष्कीकरण हो सकता है, अतः शुष्क अदरक भक्ष्य है और आलू आदि अन्य ज़मींकन्द शुष्क होने के बाद भी अभक्ष्य हैं I 1 ड़ॉ. जैन का दूसरा तर्क तह है कि गैर-ज़मींकन्दों में लट (कीड़े) आदि पाये जाते हैं, पर ज़मींकन्द को काटने पर वे एकदम साफ ही पाये जाते हैं; किन्तु यहाँ यह जानना जरूरी है कि

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