Book Title: Jain Darshan Vaigyanik Drushtie
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 102
________________ 1.(अ) जैनधर्म : विज्ञान की कसौटी पर ' - डॉ. अनिलकुमार जैन जैनधर्म का दार्शनिक पक्ष युक्तियुक्त अत: अकाट्य है, उसके आगे-पीछे कोई प्रश्न-चिह्न नहीं है; किन्तु जहाँ तक भूगोल, खगोल, खाद्य-अखाद्य आदि का प्रश्न है विभिन्न युगों में तरहतरह के दबाव उन पर आये हैं, अतः यदि उन्हें लेकर कुछ शंकाएं सामने आती हैं तो इसमें आश्चर्यजनक कुछ भी नहीं है । डॉ. जैन, जो अंकलेश्वर में तैल एवं प्राकृतिक गैस आयोग के सहायक निर्देशक हैं, ने कई बुनियादी सवाल उठाये हैं - हमें आशा है जैन विद्वान् इनके अनुद्विग्न और संतुलित उत्तर देने की कृपा करेंगे । - संपादक वर्तमान युगमें विज्ञान ने एक क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया है । बहुत-सी असंभव बातों को संभव कर दिखाया है । कई क्षेत्रों में प्रचलित अन्धविश्वासों को दूर कर उसने वस्तुस्थिति को प्रस्तुत किया है। विज्ञान में सभी सिद्धान्तों का प्रयोग करके उनकी सत्यता की जाँच की जाती है; इसी कारण यह सर्वमान्य है कि विज्ञान प्रायोगिक आधार पर जो कुछ कहता है वह सत्य है । यह कहना तो अनुचित होगा कि विज्ञानने प्रकृति की सभी पहेलियों का हल ढूंढ लिया है; लेकिन यह सत्य है कि जो कुछ उसने कर दिखाया है, वह सही है। ___ आज का युग विज्ञान का युग है; अत: चाहे वह दर्शन हो या धर्म जब तक हम किसी सिद्धान्त को प्रायोगिक आधार पर नहीं परख लेते, तब तक वह सिद्धान्त मात्र अनुमानों और कल्पनाओं पर आधारित हुआ रह जाता है। आज का मनुष्य इतना सावधान है कि वह बिना जाँचे-परखे किसी बात को मानने को तैयार नहीं है। यदि हम जैनधर्म को दूसरे लोगों के सामने प्रस्तुत करें तो उससे पहले उसकी वैज्ञानिक जाँच-परख कर लेना आवश्यक है अन्यथा कोई भी हमारी बात नहीं मानेगा । यहाँ हम कुछ उन पहलुओं पर विचार करेंगे जो विज्ञान तथा तर्क की कसौटी पर खरे नहीं उतरतें हैं । लोक का स्वरूप जैनधर्म में लोक के स्वरूप का विशद वर्णन किया गया है । इसे तीन भागों में बाँटा गया है । ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक तथा अधोलोक । मध्यलोक में कई द्वीप तथा समुद्र हैं । जम्बूद्वीप बिल्कुल मध्य में है । उसके चारों ओर लवण समुद्र है, फिर उसके आगे द्वीप फिर समुद्र आदि ।

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