Book Title: Jain Darshan Vaigyanik Drushtie
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 105
________________ 6 1 Jainism Through Science आज भी बहुत से श्रावक ऐसे हैं जो ज़मींकन्द नहीं खाते । आखिर ज़मींकन्द न खाने का कारण क्या है ? सामान्य धारणा है कि सभी ज़मींकन्दों में अनन्तान्त जीव-राशि होती है । शास्त्रो में भी इसका उल्लेख है । इनके सेवन से लाखों जीव मर जाते हैं; इसलिए इनका खाना निषिद्ध है । एक विद्वान् आलू को न खाने पर जोर देने के लिए बता रहे थे कि आलू के सुई की नोक-केबराबर के हिस्से में भी अनन्त जीव होते हैं । आलू तो साक्षात् करोडों जीवों का कब्रिस्तान है । अब हमें इस बात पर किंचित् गहराई से विचार करना होगा । क्या ज़मींकन्द इसलिए नहीं खाते हैं कि उनमें अनन्तान्त जीवराशि होती है ? मेरी समझ में ऐसा नहीं है । सूक्ष्मदर्शी में कभी नहीं देखा जा सकता है कि आलू, अदरक, मूली, गाजर, प्याज आदिमें भी जीव होते हैं । जब हम दहीं में बैक्टीरिया देख सकते हैं तब क्या ज़मींकन्द में जीव नहीं ढूँढ सकते ? इसके प्रत्युत्तर में विद्वान् कहते हैं कि ज़मींकन्द के अन्दर जीव इतने सूक्ष्म होते हैं कि उन्हें बड़ी-से-बड़ी खुर्दबीन से भी नहीं देखा जा सकता । चलो, इसे भी माने लेते हैं; लेकिन जहाँ जीव-राशि है वहाँ यदि उसके अनुकुल परिस्थिति समाप्त कर दें, तब वह जीवराशि मर जाएगी । जब जीव मरेंगे तब उनमें (ज़मींकन्दों में) सड़न - गलन भी होगी तथा वह फल-सब्जी अधिक नहीं ठहर सकेगी; लेकिन ऐसा नहीं है । सामान्यतया सभी ज़मींकन्द बहुत - बहुत समय तक अच्छे बने रहते हैं । यदि उनमें जीव होते तो वे जीव ज़मीन के अन्दर ही सुरक्षित रह सकते थे; लेकिन मिट्टी के बाहर निकालने पर जीव उस सब्जी में मर जाएँगे तथा सब्जी में सड़न - गलन प्रारम्भ हो जाएगा । इसके विपरीत हम बहुत-सी गैर-ज़मींकन्दी सब्जियों में पाते हैं कि उनमें लट आदि होती हैं । ज़मकन्द में कभी इस प्रकार के जीव नहीं पाये गये, बल्कि ज़मींकन्द को काटने पर वे एकदम साफ ही निकलते हैं । यहाँ मैं ज़मींकन्द खाने की वकालत नहीं कर रहा हूँ; मेरा तो मात्र यह निवेदन है कि जो वस्तुस्थिति है उसे जानें । यह सर्वविदित है कि जैनधर्म त्यागप्रधान धर्म है; अत: हम जितनी अधिक-से-अधिक वस्तुओं का त्याग करें, उतना उत्तम है; लेकिन किसी वस्तु पर कुछ लांछन लगा कर उसे छोडना अनुचित है । ज़मकन्द न खाने का एकमात्र तर्क-संगत कारण यह नजर आता है कि ज़मीन के अन्दर की सब्जी को बाहर निकालने के लिए ज़मीन खोदनी पड़ती है। ज़मीन खोदने में केंचुआ, चींटी आदि बहुत सारे जीवों की हिंसा होती है । ज़मींकन्द खाने का निषेध इसी वजह से है । मैं जानता हूँ कि लोग मेरे इस वक्तव्य से सन्तुष्ट नहीं होंगे; क्योंकि ऐसा मानने पर उन्हें मूँगफली ( सींग) भी छोड़ देनी होगी । बहुत सारे ऐसे लोग भी है जो ज़मींकन्द तो नहीं खाते, लेकिन खान खुदवाने, खेती करने, मकान बनवाने आदि का व्यापार करते है; अतः उन लोगों का ये सब धन्धे करते हुए ज़मींकन्द छोड़ना मजाक ही है । इसी प्रकार बहुत से श्रावक तथा साधु दही, या छाछ से निकलने वाले घी को ग्रहण करते हैं; लेकिन छाछ बिलौने से तो बहुत से बैक्टीरिया मर जाते है, तब फिर इसे भी छोड़ना पड़ेगा । यही कारण है कि लोग उक्त वक्तव्य को मानने को तैयार नहीं हैं ।

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