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Jainism : Through Science सिद्धान्त सत्य साबित हुए हैं, वे कल असत्य सिद्ध हो सकते हैं।
हाल ही में अमरीकी वैज्ञानिक कार्ल सेगन ने एक कॉस्मिक कैलेण्डर विकसित किया है, उसमें और जैन काल-चक्र में बहुत कुछ साम्य है । वैज्ञानिकों की मान्यतानुसार पृथ्वी की उत्पति सूर्य से हुई, और यह घटना करीब साढ़े पाँच अरब वर्ष पहले घटी । उस घटना से लेकर पृथ्वी के प्रलय की घटना तक उन्होंने 12 मास अर्थात् 365 दिन की कल्पना की है और उस समय में कौन-कौन-सी घटनाएँ कैलेंडर के किस दिन घटी, इसका निर्देश इसमें किया गया है । कालचक्र के साथ इनका मेल कैसे बैठता है, उन सब का विश्लेषण मैंने 'जैन काल-चक्र और कॉस्मिक कैलेंडर' नामक लेख में किया है; जो सितम्बर 1984 के गुजराती सामयिक 'नवनीत . समर्पण', में प्रकाशित हुआ है। ___ 'डिस्कव्हर' नामक अमरीकी विज्ञान-मासिक में कुछ ही साल पहले 11.5 फुट की लम्बाई
और 23 फुट के विस्तार के पंखों से युक्त पक्षी के अश्मीभूत अवशेष (फॉसिल) का फोटोग्राफ दिया गया था ।
विज्ञान, प्राचीन काल की महाकाय जीव-सृष्टि का अन्वेषण कर रहा है और डाइनोसॉर जैसे महाकाय प्राणी के अश्मीभूत अवशेष भी प्राप्त हुए हैं । इन अवशेषों के आधार पर वैज्ञानिक उसकी अवगाहना कम-से-कम 150 फुट मानते हैं और उसके अस्तित्व का काल 7 करोड़ वर्ष पूर्व माना जाता है। ___ यही डाईनोसॉर जैन जीव-विज्ञान के अनुसार भुज-परिसर्प के विभाग में रखा जाता है । वर्तमान युग के नकुल आदि का समावेश इस विभाग में होता है । जीवाभिगम, पनवणा इत्यादि जैन ग्रन्थों के अनुसार इन्हीं जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना गाउ पृथक्त्व अर्थात् 2 गाउ से ले कर 9 गाउ तक होती हैं । डाइनोसॉर की उत्कृष्ट अवगाहना को यदि 2 गाउ मान लिया जाए तो उस वक्त मनुष्य की अवगाहना 3 गाउ होती है । इसी गणना अनुसार मनुष्य की अवगाहना से 2/3 अवगाहना डाइनोसॉर की होती है । 1 धनुष्य के बराबर 6 फुट लेने से डाइनोसॉर के अवशेषों से प्राप्त उसकी अवगाहना 25 धनुष्य होती है और उसके समकालीन मनुष्य की अवगाहना 37.5धनुष्य हो सकती है । इसी अवगाहना वाले मनुष्य सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ के युग में थे तथा काल-चक्र की गणनानुसार, यही समय तीन सागरोपम पूर्व का अनुमानित है । ___ यद्यपि तीन सागरोपम वर्ष और 7 करोड़ वर्ष में काफी अन्तर होने पर भी, हम निःसन्देह कह सकते हैं कि 7 करोड़ वर्ष पूर्व का अनुभव गलत है, क्योंकि जिस पद्धति से प्राचीन अवशेषों की प्राचीनता का निश्चय किया जाता है, वह पद्धति ही गलत मालूम देती है । इस पद्धति में कार्बन-14 (सी-14) के समस्थानिकों (आइसोटॉप्स) का उपयोग किया जाता है । इसी पद्धति के बारे में "द पिरामीड पॉवर' नामक पुस्तक के 20में पृष्ट पर लिखा गया है कि इस पद्धति के अनुसार प्राचीन पदार्थों का काल-निश्चय करने में सैकड़ों नहीं बल्कि हज़ारों और लाखों वर्षों की गलती होती है' । अतः हम इस पद्धति से जिस पदार्थ को 3-4 लाख वर्ष पुराना मानते हैं, वह पदार्थ कम-से-कम 3-4 अरब वर्ष पुराना हो सकता है; अतः डाइनोसॉर का अस्तित्व 7 करोड़