Book Title: Jain Darshan Vaigyanik Drushtie
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 104
________________ जैनदर्शन : वैज्ञानिक दृष्टिसे उनका जन्म सम्मूर्च्छन- रीति से होता है । I विज्ञान ने जैनधर्म के उक्त कथन को गलत सिद्ध कर दिखाया है। जीव-विज्ञान के अनुसार किसी भी जीव-जन्तु का जन्म सम्मूर्च्छन रीति से होना संभव नहीं है । मधुमक्खियों से तो सभी परिचित हैं । उनमें नर तथा मादा दोनों प्रकार की मक्खियाँ पायी जाती हैं । रति क्रिया द्वारा मादा मक्खी, जिसे रानी भी कहते हैं, हज़ारों अण्डों को एक साथ जन्म देती है । जबकि जैन धर्मानुसार मक्खी चार इन्द्रिय जीव है, अतः वह नपुंसक होनी चाहिए । इसी प्रकार चींटी तीन इन्द्रिय जीव है तथा जैन धर्मानुसार वह भी नपुंसक होती है जब कि जीव विज्ञाननें माइक्रोस्कोप द्वारा सिद्ध कर दिया है कि उनमें भी नर तथा मादा होते है । लट- केंचुआ आदि भी उभयलिंगी होते है, अत: उनका जन्म भी सम्मूर्च्छन रीति से संभव नहीं है । इतना ही नहीं, जीव-विज्ञान में पेड़-पौधों में भी नर तथा मादा का भेद है । उनमें भी परागणयन की क्रिया होती है । यह सर्वविदित है कि मलेरिया नाम की बीमारी मादा मच्छर के काटने से होती है, जबकि जैन मच्छरों को नपुंसक ही मानते हैं । - 5 जब विभिन्न प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि जीवों में नर तथा मादा का भेद होता है, चाहे वे कितनी ही इन्द्रिय वाले हों तब भी क्या हम जैनधर्म में वर्णित जीवों के नपुंसक होने की बात को सही मानेंगे और पुनर्विचार नहीं करेंगे ? चलित रस जैनधर्म के अनुसार जब किसी खाद्य पदार्थ के स्वाद में परिवर्तन आ जाए, तब उसे ग्रहण नहीं करना चाहिये; क्योंकि उसमें जीवों की उत्पत्ति हो जाती है । इस प्रकार के खाद्य को चलित रस की संज्ञा दी है । इसी कारण बहुत से श्रावक अचार इत्यादि वस्तुएँ ग्रहण नहीं करते तथा बासी वस्तुओं को भी नहीं खाते । वैज्ञानिक आधार पर भी यह कथन शत-प्रतिशत सत्य है । स्वाद-परिवर्तन तभी होता है, जब उनमें जीवों (बैक्टीरिया आदि) की उत्पत्ति होती है; लेकिन जैन दोहरी चाल चलते हैं। बहुत से लोग अचार का सेवन तो नहीं करते, किन्तु दही बड़े चाव से खाते हैं । माइक्रोस्कोप से देखा जा चुका है कि दही में हजारों बैक्टीरिया होते हैं । वैसे भी दूध से दहीं बनने की क्रिया में स्वाद में परिवर्तन हो जाता है; अतः दही चलित रस है; लेकिन बहुत से जैन साधु भी दही का सेवन करते हैं, कहते हैं कि वे मात्र मर्यादित दही ही ग्रहण करते हैं । मर्यादित या गैर-मर्यादित क्या होता है, जबकि स्वाद बदल गया और जीवों की उत्पत्ति हो गयी ? बहुत से लोग दही नहीं खाते हैं; लेकिन छाछ (मठा) ग्रहण कर लेते हैं । छाछ को अचित मानते हैं; लेकिन यह उनका भ्रम है। छाछ में भी दही के सभी गुण मौजुद रहते हैं । उसमें भी बैक्टीरिया होते हैं । छाछ को दूध में डालकर दही जमाया जा सकता है यदि छाछ में बैक्टीरिया नहीं है, तब दूध से दही बनना संभव नहीं हैं । ज़मींकन्द जैनधर्म में ज़मींकन्द (ज़मीन के अन्दर पैदा होने वाले फल आदि) खाने का निषेध है ।

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