Book Title: Jain Darshan Vaigyanik Drushtie
Author(s): Nandighoshvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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Jainism : Through Science
गुदप्पविट्ठाणं....... आउसो ! इमस्स जंतुस्स पणवीसं सिराओ पित्तधारिणीओ, पणवीसं सिराओ सिंभधारिणीओ, दस सिराओ सुक्कधारिणीओ, सत्तसिरासयाई पुरिसस्स, तीसूणाई इत्थीयाए वीसूणाई पंडगस्स.......
[Tandulaveyaliya payannä pp. -35, 36-A] • अट्ठारसपिट्ठकरंडयस्स संधीउ हुंति देहमि ।
बारसपंसुलियकरंडया इहं तह च्छ पंसुलिए ॥६८॥ होइ कडाहे सत्तंगुलाई जीहा पलाइ पुण चउरो अच्छीउ दो पलाई सिरं, तु भणियं चउकवालं ॥६९॥ अछुट्टपलं हिययं.........। कालेजयं तु समए पणवीस पलाई निदिटुं ॥७० ॥ अंताई दोन्नि इहयं पत्तेयं पंच पंच वामाओ । सट्ठिसयं संधीणं, ......... ॥७१॥
..................... सट्ठिसयं अन्नाणवि सिराण अहोगामिणीण तहा ॥७३॥ सट्ठिसयं तु सिराणं नाभिप्पभवाणं सिरमुवागयाणं । ........... अवराण गुदपविट्ठाण होइ सट्ठिसयं तह सिराणं । ........... तिरियगमाण सिराणं सट्ठिसयं होइ अवराणं ॥७६ ॥ ........... पणवीसं सिंभधरणीओ ॥७७॥ तह पित्तधारिणीओ पणवीसं दस य सुक्क धरणीओ इय सत्त सिरसयाई नाभिप्पभवाणं पुरिसस्स ॥७८॥ तीसूणाई इत्थीण, वीसहीणांइ हुँति संढस्स । ..........
[Pravacan Saroddhara. pp. 402.] 7. • Loka prakas'a part-I of S'ri Vinayavijayji Sarga-3 Verses-55 to 60. • Pannavana Suttam pp. 192.
Published by Mahavira Jain Vidyalaya • Bruhat Samgrahani of Sri Candrasuriji Verses-325. 8. • गब्भट्ठि मणुस्सीणुक्किट्ठा होइ वरिसबारसगं ।
[Pravacana Saroddhara of Sri Nemichandrasāriji pp. 401-A] • (4) मणुस्सी गब्भे णं भंते ! 'मणुस्सीगब्भे' त्तिकालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं बारसं संवच्छराई ।
[Bhagavati Sutra part I pp.98 published by Mahavira Jain Vidyalaya] • कोइ पुण पावकारी बारस संवच्छराई उक्कोसं । अच्छइ उ गब्भवासे असुइप्पभवे असुइयंमि ॥ .
___[Tandulaveyaliya payanna pp. 14-A] 9. [5] कायभवत्थे णं भंते ! "कायभवत्थे" त्ति कालओ केवच्चिवरं होइ ? गोयमा ! जहनेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं चउवीसं संवच्छंराई ।
(Bhagavati Sutra part-I pp. 98, published by Mahavira Jain Vidyalaya) • गब्भस्स य कायठिइ, नराण चउवीस वरिसाइं ।
[Pravcana Saroddhara of S'ri Nemichandrasuri pp. 401-A]

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