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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
(१३) दावाग्निदान कर्म-वन, जंगल, खेत आदि में आग लगाने का कार्य।
(१४) सरबहतडागशोषणता कर्म-सरोवर, झील, तालाब आदि को सुखाने का कार्य करना।
(१५) असतीजन पोषणता कर्म-कुलटा स्त्रियों के पोषण, हिंसक प्राणियों का पालन, समाजविरोधी तत्त्वों का संरक्षण आदि ।
इन १५ कर्मादान' तथा इनसे मिलते-जुलते अन्य प्रकार के कार्यों का भी निषेध किया गया है क्योंकि इन कार्यों से महान् हिंसा होती है। श्रावक तो ऐसे कार्य करता है जिनमें कम से कम हिंसा हो, और ऐसा व्यवसाय करता है जिससे समाज या व्यक्ति का शोषण न हो। (८) अनर्थदंडविरमण व्रत
स्वयं के लिए या अपने पारिवारिक व्यक्तियों के जीवन-निर्वाह के लिए अनिवार्य सावद्य प्रवृत्तियों के अतिरिक्त शेष समस्त पापपूर्ण प्रवृत्तियों से निवृत्त होना अनर्थदण्ड विरमणव्रत है। श्रावक को व्यर्थ की बातें करना, शेखी मारना, निष्प्रयोजन प्रवृत्ति करना जिससे कुछ भी लाभ न हो और दूसरों को कष्ट पहुँचे ऐसी प्रवृत्ति नहीं करनी चाहिए। अनर्थदंड-निष्प्रयोजन हिंसा के चार रूप हैं-(१) अपध्यानाचरित, (२) प्रमादाचरित, (३) हिंस्र प्रदान और (४) पापकर्मोपदेश । इस व्रत के मुख्य पाँच अतिचार हैं१ इन वस्तुओं का आजीविक मतानुयायियों के लिए भी त्याग का विधान था।
देखिए(क) इनसायक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन एन्ड एथिक्स, जिल्द १, पृ० २५६-६८
-होएनल । (ख) 'द आजीविकाज' 'प्री-बुद्धिस्ट इण्डियन फिलासफी', पृ. २६७-३१८
डॉ० बी० एम० बरुआ। (ग) हिस्टोरिकल ग्लीनिंग्ज, पृ० ३७ - डॉ०बी०सी० लाहा । (घ) हिस्ट्री एन्ड डोक्ट्रिन्स ऑफ द आजीविकाज-ए० एल० बाशम । (6) लाइफ इन ऐंशियन्ट इंडिया ऐज डेपिक्टेड इन जैन कैनन्स, पृ० २०७-११
-जगदीशचन्द्र जैन । (च) सम्पूर्णानन्द अभिनन्दन ग्रंथ में 'मंखलिपुत्र गोशाल और ज्ञातृपुत्र महावीर'
---जगदीशचन्द जैन । । (छ) महात्मा गांधी ने अहिंसक समाज की जो कल्पना की थी वह भी इन कर्मा
दानों के त्याग से मिलती-जुलती थी।