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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
बृहत्कल्पणि
इस चूर्ण का आधार मूलसूत्र व लघुभाष्य है । दशाश्रुतस्कन्धचूर्णि का और बृहत्कल्पfर्ण का प्रारम्भिक अंश प्रायः मिलता-जुलता है। भाषा विज्ञों का मन्तव्य है कि बृहत्कल्पचूर्णि से दशाश्रुतस्कन्धचूर्ण प्राचीन है । यह सम्भव है कि ये दोनों ही चूर्णियाँ एक ही आचार्य की हों।
प्रस्तुत चूर्णि में पीठिका और छह उद्देशक हैं। प्रारम्भ में ज्ञान के स्वरूप पर चिन्तन किया गया है। अभिधान और अभिधेय को कथञ्चित् भिन्न और कथञ्चित् अभिन्न बताते हुए वृक्ष शब्द के छह भाषाओं में पर्याय दिये हैं। जिसे संस्कृत में वृक्ष कहते हैं वही प्राकृत में रुक्ख, मगध में ओदण, लाट में कूर, दमिल-तमिल में चोर और आंध्र में इडाकु कहा जाता है ।
चूर्ण में तस्वार्थाधिगम, विशेषावश्यकभाष्य, कर्म-प्रकृति, महाकल्प, गोविन्दनियुक्ति आदि ग्रन्थों का उल्लेख किया है। भाषा संस्कृत मिश्रित प्राकृत है। चूर्णि में प्रारम्भ से अन्त तक लेखक के नाम का निर्देश नहीं हुआ है।
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