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६१६. जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा दुश्चरित्र कहेंगे इसका भय, दंड, दुर्गति आदि अनेक भयस्थान बताये गये हैं।
समवायांग सूत्र में नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य, और देवताओं के आवास स्थल के सम्बन्ध में विस्तार से निरूपण है। जैसे कि रत्नप्रभा पृथ्वी में एक लाख ७८ हजार योजन प्रमाण में ३० लाख नरकावास है। इसी प्रकार अन्य नरकावासों का भी उल्लेख है और देवों के आवास का भी वर्णन है। वैसे ही अंगुत्तरनिकाय में नवसत्त्वावास माने हैं। उनमें सभी जीवों को विभक्त कर दिया गया है। ये नवसत्त्वावास निम्न हैं:
प्रथम सत्त्वावास में विविध प्रकार के काय और संज्ञा वाले कितने ही मनुष्य देव और विनिपातिकों का समावेश है।
दूसरे आवास में विविध प्रकार की काया वाले किन्तु समान संज्ञा वाले ब्रह्मकायिक देवों का वर्णन है।
२. तीसरे आवास में समान काय वाले किन्तु विविध प्रकार की संज्ञा वाले आभास्वर देवों का वर्णन है।
चतुर्थ आवास में एक सदृश काय और संज्ञा वाले शुभ कृष्ण देवों का निरूपण है।
पांचवें आवास में असंज्ञी और अप्रतिसंवेदी ऐसे असंज्ञ सत्त्व देवों का वर्णन है।
छठे आवास में रूप संज्ञा, पटिघ संज्ञा और विविध संज्ञा से आगे बढ़कर जैसे आकाश अनन्त है वैसे आकाशानंचायतन को प्राप्त हुए वैसे सत्त्वों का निरूपण है।
सातवें आवास में उन सत्त्वों का वर्णन है जो आकाशानंचायतन को भी अतिक्रमण करके अनंत विज्ञान है, ऐसे वित्राणानंचायतन को प्राप्त हुए हैं।
आठवें आवास में वे सत्त्व हैं, जो कुछ भी नहीं है अकिञ्चायतन को प्राप्त हुए हैं।
नवें आवास में वे सत्त्व हैं जो नवज्ञानासआयतन को प्राप्त हैं।
१ अंगुत्तरनिकाय