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पारिभाषिक शब्द कोश ७०७ विभङ्गजान--मिथ्यात्व के उदय से रूपी पदार्थों का विपरीत अवधिज्ञान, विभंगज्ञान कहलाता है।
वेद-जिसके द्वारा इन्द्रियजन्य, संयोगजन्य सुख का बेदन किया जाय, वह वेद है।
वेदक सम्यक्स्व-क्षायोपमिक सम्यक्त्व में विद्यमान जीव सम्यक्त्व मोहनीय' के अन्तिम पुद्गल के रस का अनुभव करता है उस समय के उसके परिणाम वेदक सम्यक्त्व कहलाते हैं। - बैक्रिय शरीर-जिस शरीर के द्वारा छोटे-बड़े, एक-अनेक, विविध-विचित्र रूप बनाने की शक्ति प्राप्त हो । अथवा जो शरीर वैक्रिय वर्गणाओं से निर्मित अथवा युक्त हो।
बैनयिकी बुद्धि-गुरुजनों की सेवा से प्राप्त होने वाली बुद्धि। .. व्यंजनावग्रह----अर्थावग्रह से पहले होने वाला अत्यन्त अव्यक्त ज्ञान ।
शरीर पर्याप्ति-...जिस कर्म के उदय से जीव के औदारिक, वैक्रिय आदि शरीर बनते हैं अथवा रस के रूप में बदल दिये गये आहार को रक्त आदि सप्त धातुओं के रूप में परिणमाने की जीव की शक्ति विशेष ।
शीर्ष प्रहेलिका-चौरासी लाख शीर्ष प्रहेलिकांग की एक शीर्ष पहेलिका होती है।
श्रुतज्ञान-जो ज्ञान थु तानुसारी है जिसमें शब्द और अर्थ का सम्बन्ध भासित होता है, जो मतिज्ञान के पश्चात् होता है तथा शब्द और अर्थ की पर्यालोचना के अनुसरणपूर्वक इन्द्रिय व मन के निमित्त से होने वाला ज्ञान थ तज्ञान है।
शब्बनय-पदार्थों के वाचक शब्दों में ही जिसका व्यापार होता है वह शब्दनय है।
संक्रमण-एक कर्म रूप में स्थित प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश का अन्य सजातीय कर्म रूप में बदल जाना अथवा वीर्य विशेष से कर्म का अपनी ही दूसरा सजातीय कर्मप्रकृति स्वरूप हो जाना।
संज्वलन कवाय-जिस कषाय के उदय से आत्मा को यथाख्यातचारित्र की प्राप्ति न हो।
संशी-बुद्धिपूर्वक इष्ट-अनिष्ट में प्रवृत्ति-निवृत्ति करने वाले जीव; अथवा जिनमें लब्धि या उपयोग रूप मन पाया जाय वे संज्ञी हैं।
संहनन--जिस कर्म के उदय से हड्डियों का परस्पर में जुड़ जाना या रचनाविशेष ।
सत्ता...बंध समय या संक्रमण समय से लेकर जब तक उन कर्म परमाणओं का अन्य प्रकृति रूप से संक्रमण नहीं होता या उनकी निर्जरा नहीं होती तब तक