Book Title: Jain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 792
________________ शुद्धि पत्र १०७ १२५ १३८ अशुद्ध बैगचूलिका संलेखनाश्रत त्रिषष्ठि प्रचीन देवधिगणी आचरंग आवश्यक चूर्णि उपाधि भगवात महयुद्ध आसस्त जैन सहित्य श्रवक बभव (करता हूँ। बनाकार पास व्यक्तियों १६८ २२६ २४४ ४४४ ४६४ ४६८ बंगचूलिका संलेखनाश्रुत त्रिषष्टि प्राचीन देवद्धिगणी आचारांग आचारांग चणि उपधि भगवान महायुद्ध आसक्त जैन साहित्य श्रावक वैभव (करता हूँ। वजाकार पाठ व्यक्तियों होता प्रज्ञापना सिद्धर्षिगणी वृष्णिदशा अंग्रेजी मुनि कन्हैयालालजी कमल ने विच्छिन्न धातकीखण्ड क्षेत्र होगा ५२६ प्रज्ञपना सर्षिगणी बृष्णिदशा अंग्रजी ५३६ xxx ५५६ ওও ५७६ विछिन्न घातकीखण्ड क्षत्र

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