Book Title: Jain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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...... शब्दानुक्रमणिका
७३७
उपवास १५०
औदारिक २४५ .......... उपसर्ग अध्ययन ८१
औद्देशिक ३१२ उपसर्गहरस्तोत्र ४३७ : - ... औपनिषद् ब्रह्मावत ४८८ उपशमसम्यक्त्व ५६५
औपपातिक २५२, ५२४ - - उपांग १६,२६
,
ओपपातिकवृत्ति ५२३
औषपातिकवृत्ति ५२३ उपाध्याय ३१५, ४८५ .. ... औपपातिकसूत्र ३४, १२६, २०१-२०५ उपाध्याय धनविजयजी ५४८
कच्छुल्ल नारद १३६ . . ५.. :उपाध्याय भाव विजयजी ५४६ . कठोपनिषद् ६०६ उपाध्याय लक्ष्मीवल्लभजी ५४६ कनकनन्दी ५६३
, उपाध्याय विनयविजयजी ५४६... कनकावली तप १६५: : उपाध्याय विमलहर्षजी ५४८ . कन्दर्प १४६ उपाध्याय शांतिसागरजी ५४६
कपिल २८४,२६४
- १५. उपाध्याय समयसुन्दरगणी २०, २२, २५ कपिलपुर २०३ उपासक १३६, २७२, ४५२, ६२७...: कपिलमुनि २९४ . .. ... उपासकदशांग ३४, १३६-१६०, ६१५, कर्म ३४, ५३, ११७, १३५, २५०,
६२६ उपाश्रय २७६
कर्म आर्य २५४
: - उम्बरदत्त १६० ..... कर्मजा ३१६, ३२४ उरब्भिय २६३.
कर्मप्रकृति ३०३ ऊर्ध्वलोक २३६
कर्मप्रवादपूर्व १६५, २२८, २८२, २८३, एके न्द्रिय २३८, २५३ .
३०८
: एकोरुकद्वीप २१८
कर्मफल २९६ एलय अध्ययन २६३
कर्मभूमि १२० एलाचार्य ५७६ .
.... कर्मभूमिज २१८ . . एषणा समिति १७८
कर्मयोग १८ ऐरवत क्षेत्र १०७, ११० . कर्मवाद २५६, ६३६.... । ऐरावत २६१, २६५
कर्मवीर्य ८३,५४ ऐरावण ८३
.. कर्मसिद्धान्त १८६, २७७ ओपनियुक्ति २२, २३, ४३८, ४३६, कर्मादान १४८ ४६७,५१७
कम्बोज देश २०१ ओघनियुक्ति बृहद्भाष्य ४८६
करकण्ड ४४३.
10 ओपनियुक्ति लघुभाष्य ४८६, ४८७ करण ८०,३०६
" ओघसंज्ञा ५१२
करणलब्धि ५६५ ओजआहार ८८
करणानुयोग १८, ६०१:., औत्पातिकी ३२४
- कल्प ११, ४८१ .. .

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