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आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ५५५
हिन्दी अनुवाद
आचार्य अमोलक ऋषिजी महाराज स्थानकवासी परम्परा के एक लब्ध प्रतिष्ठित आचार्य थे। आपके पिता का नाम केवलचन्द, माता का नाम हुलासाबाई था । १९३४ में आपका जन्म हुआ । आपने १९४४ में दीक्षा ग्रहण की और संस्कृत, प्राकृत व आगम साहित्य का अध्ययन कर आगमों का हिन्दी अनुवाद प्रारम्भ किया और तीन वर्ष के स्वल्प समय में बत्तीस आगमों का अनुवाद कर महान श्रुत सेवा की। यह अनुवाद हिन्दी में सर्वप्रथम किया गया । अतः कुछ स्थलों पर अनुवाद जितना स्पष्ट और प्रांजल होना चाहिए उतना नहीं हो सका किन्तु इस अनुवाद से साधारण लोगों को, आगमों को पढ़ने में अत्यधिक सहायता प्राप्त हुई। प्रथम अनुवाद होने से उनका स्वतः महत्त्व है ।
पूज्यश्री आत्मारामजी महाराज पंजाब प्रान्त के थे । वे स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के प्रथम आचार्य थे। उन्होंने आगमों का अनुवाद ही नहीं किया किन्तु आगमों पर हिन्दी में व्याख्याएँ भी लिखीं । आपने आचाराङ्ग, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, अनुत्तरोपपातिक, उपासकदशाङ्ग, अनुयोगद्वार, अन्तकृत दशाङ्ग, स्थानाङ्ग आदि आगमों पर हिन्दी में विस्तार से विवेचन लिखा है जो सरल, सुगम व पाठकों को आगम के मर्म को समझने में बहुत ही उपयोगी है।
आचार्य श्री जवाहरलाल जी महाराज स्थानकवासी परम्परा के ज्योतिर्धर आचार्य थे । आपश्री के तत्वावधान में सूत्रकृताङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध की टीका का अनुवाद हुआ। द्वितीय श्रुतस्कन्ध के मूल मात्र का अनुवाद चार भागों में प्रकाशित हुआ है।
पूज्य श्री हस्तीमलजी महाराज ने दशवेकालिक, नन्दी, प्रश्नव्याकरण, अन्तगड आदि आगमों के अनुवाद किये हैं ।
प्रसिद्ध वक्ता श्री सौभाग्यमलजी महाराज ने आचाराङ्ग का, ज्ञान मुनिजी ने विपाकसूत्र का मुनिश्री कन्हैयालालजी 'कमल' ने ठाणाङ्ग व समवायाङ्ग का, पं० विजयमुनिजी ने अनुत्तरोपपातिक सूत्र का पण्डित हेमचन्द्रजी ने प्रश्नव्याकरणसूत्र का अनुवाद और विवेचन किया है । ये अनुवाद और विवेचन आधुनिक भाव, भाषा व शैली में किये गये हैं । सेठिया जैन लाइब्रेरी बीकानेर से और संस्कृति रक्षक संघ सैलाना से अनेक