________________
जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
कर्मों के अभाव से आत्मा का जो अपने स्वभाव में आनयन - ले जाना ही अध्ययन है । जिससे शीघ्र ही अभीष्ट अर्थ की सिद्धि होती है वह अध्ययन है क्योंकि अध्ययन से अनेक भवों से आते हुए अष्ट प्रकार के कर्म रज का क्षय होता है इसलिए इसे भावाध्ययन कहा गया है।
४४८
श्रुत, स्कन्ध, संयोग, गलि, आकीर्ण, परीषह, एकक, चतुष्क, अंग, संयम, प्रमाद, संस्कृत, करण, उरभ्र, कपिल, नमि, बहुश्रुत, पूजा, प्रवचन, साम, मोक्ष, चरण, विधि, मरण आदि पदों पर निक्षेप की दृष्टि से व्याख्या की गई है । यत्र-तत्र अनेक शिक्षाप्रद कथानक दिये गये हैं। जैसे गंधार श्रावक, तोसलिपुत्र, आचार्य स्थूलभद्र, स्कन्दकपुत्र, ऋषि पाराशर, कालक, करकेंडू आदि प्रत्येकबुद्ध, हरिकेश, मृगापुत्र आदि की कथाओं का उल्लेख है । निह्नवों के जीवन पर भी प्रकाश डाला गया है । भद्रबाहु के चार शिष्य राजगृह के वैभार पर्वत की गुफा में शीत परीषह से और मुनि सुवर्णभद्र के मच्छरों के घोर उपसर्ग से कालगत होने का वर्णन है । इसमें अनेक उक्तियाँ सूक्तियों के रूप में हैं जैसे
राई सरिसवमित्ताणि परछिद्दाणि पाससि । अप्पणो बिल्लमित्ताणि पासंतोऽवि न पाससि ॥
राई के समान तू दूसरों के दोषों को देखता है पर बैल के समान स्वयं के दोषों को देखकर भी नहीं देखता है।
सुखी मनुष्य प्राय: जल्दी नहीं जाग पाता
सुहिओ हु जणो न वुझाई
हिंसा और परिग्रह का त्याग ही वस्तुतः भावप्रव्रज्या है। "भावंमि उ पव्वज्जा आरम्भपरिग्गहच्चाओ"
प्रस्तुत नियुक्ति में ६०७ गाथाएं हैं।
आचारांगfty for
आचारांग के दोनों श्रुतस्कन्धों पर नियुक्ति प्राप्त होती है, जिसमें ३४७ गाथाएं हैं। प्रस्तुत नियुक्ति उत्तराध्ययननियुक्ति के पश्चात् और सूत्रकृताङ्गनियुक्ति के पूर्व रची गई है।
सर्वप्रथम सिद्धों को नमस्कार कर आचार, अंग, श्रुत, स्कन्ध, ब्रह्म, चरण, शस्त्रपरिज्ञा, संज्ञा और दिशा इन पर निक्षेप दृष्टि से चिन्तन किया गया है । चरण के छह निक्षेप हैं, दिशा के सात निक्षेप हैं और शेष के चारचार निक्षेप हैं ।