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२३२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा निर्वाण ३७६ में स्वर्गवास हुआ था। द्वितीय गर्दभिल्ल को नष्ट करने वाले कालकाचार्य हुए। उनका समय वीर निर्वाण ४५३ है और तृतीय कालकाचार्य जिन्होंने संवत्सरी महापर्व पंचमी के स्थान पर चतुर्थी को मनाया था, उनका समय वी०नि० ६६३ है।
इन तीन कालकाचार्यों में प्रथम कालकाचार्य जिन्हें श्यामाचार्य भी कहते हैं उन्होंने पट्टावलियों के अभिमतानुसार प्रज्ञापना की रचना की। किन्तु पट्टावलियों में उनको २३वां स्थान पट्ट-परंपरा में नहीं दिया है। अन्तिम कालकाचार्य प्रज्ञापना के कर्ता नहीं हैं क्योंकि नंदी, जो वीर निर्वाण ६६३ के पहले रचित है उसमें, प्रज्ञापना को आगम सूची में स्थान दिया गया है । अतः अब चिन्तन करना है कि प्रथम और द्वितीय कालकाचार्य में से कौन प्रज्ञापना के रचयिता हैं ? डा० उमाकान्त का अभिमत है कि यदि दोनों कालकाचार्यों को एक माना जाय तो ११वीं पाट पर जिस श्यामाचार्य का उल्लेख है वे और गर्दभिल्ल राजा को नष्ट करने वाले कालकाचार्य ये दोनों एक सिद्ध होते हैं। पट्टावली में जहां उन्हें दो गिना है वहाँ भी एक की तिथि वीर सं०३७६ वर्ष है तो दूसरे की तिथि ४५३ है। वैसे देखें तो दोनों में ७७ वर्ष का अन्तर है इसलिए चाहे जिसने प्रज्ञापना रचा हो प्रथम या दूसरे ने अथवा दोनों एक हों तो भी विक्रम से पूर्व होने वाले कालकाचार्य (श्यामाचार्य) की रचना है इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है।
परम्परा की दृष्टि से निगोद की व्याख्या करने वाले कालक और श्याम ये दोनों एक ही आचार्य हैं क्योंकि ये दोनों शब्द एकार्थक हैं। परम्परा की दृष्टि से वीर निर्वाण ३३५ में वे युगप्रधान हुए और ३७६ तक वे जीवित रहे । यदि प्रज्ञापना उन्हीं कालक की रचना है तो वीर निर्वाण ३३५ से ३७६ के मध्य की रचना है। नियुक्ति में इससे पूर्व की रचनाएँ हैं। नन्दीसूत्र में जो आगमसूची दी गई है उसमें प्रज्ञापना का उल्लेख है। नन्दी विक्रम संवत् ५२३ से पूर्व की रचना है अतः उसके साथ प्रज्ञापना के उक्त समय का विरोध नहीं है। १ (क) आद्याः प्रज्ञापनाकृत् इन्द्रस्य अग्रे निगोदविचारवक्ता श्यामाचार्यापरनामा । .. . स तु वीरात् ३७६ वर्षेतिः ।
-(खरतरगच्छीय पदावली) (ख) धर्मसागरीय पट्टावली के अनुसार-एक कालक जो बीर निर्वाण ३७६ में
मृत्यु को प्रप्त हुए।