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अंगबाह्य आगम साहित्य २७७ उनके परलोक के जीवन पर डाला गया है। सांसारिक मोह और ममताओं का सबल चित्रण है। पुनर्जन्म और कर्मसिद्धान्त का समर्थन सर्वत्र मुखरित हो रहा है।
चतुर्थ वर्ग का नाम पुष्पचूला है। इस वर्ग में १० अध्ययन हैं। श्री देवी, ह्रीदेवी, धुतिदेवी, कीतिदेवी, बुद्धिदेवी, लक्ष्मीदेवी, इलादेवी, सूरादेवी, रसदेवी और गन्धदेवी।
एक बार भगवान महावीर राजगृह नगर में पधारे। उस समय श्री देवी सुधर्मा सभा से आई और उसने दिव्य नाटक किये किन्तु उसने बहुपुत्रिका की भाँति बालक-बालिकाओं की विकुर्वणा नहीं की। गौतम ने उसके पूर्वभव के सम्बन्ध में जिज्ञासा प्रस्तुत की। भगवान ने कहा कि राजगृह में सुदर्शन श्रेष्ठी था। उसकी यह भूता नामक पुत्री थी। युवावस्था में भी यह वृद्धा के समान दिखलाई देती थी अत: इसका विवाह नहीं हो सका था। एक बार पुरुषादानीय भगवान पार्श्वनाथ वहाँ पधारे। उनके उपदेश को श्रवण कर पुष्पचूलिका आर्या के पास वह श्रमणी बनी। उसके पश्चात् वह रात-दिन अपने शरीर की सेवा-शुश्रूषा में लगी रहती । पुष्पचूलिका आर्यिका ने उसे बताया कि यह श्रमणाचार नहीं है । तुम्हें इन पापों की आलोचना कर शुद्धीकरण करना चाहिए। पर वह आज्ञा की अवहेलना कर भिन्न स्थान पर रहने लगी। बिना आलोचना किये मर कर यह देवी हुई है। महाविदेह में जन्म लेकर यह निर्वाण प्राप्त करेगी। इसी प्रकार शेष नौ अध्ययनों में भी कथाएँ हैं।
पांचवें वर्ग का नाम वृष्णिदसा है। उसमें १२ अध्ययन हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-निषधकुमार, मायनीकुमार, बहकुमार, वेधकुमार, प्रगतिकुमार, ज्योतिकुमार, दशरथकुमार, दृढ़रथकुमार, महाधनुकुमार, सप्तधनुकुमार, दशधनुकुमार और शतधनुकुमार।
द्वारिका नगरी में श्रीकृष्ण वासुदेव राज्य करते थे। समुद्रविजय प्रमुख दश दशाह राजा, बलदेव प्रमुख पाँच महावीर, उग्रसेन प्रमुख राजा, प्रद्यम्न प्रमुख कुमार, शंब प्रमुख योद्धा, वीरसेन प्रमुख वीर, रुक्मिणी प्रमुख रानियां और अनंगसेना आदि गणिकाओं से श्रीकृष्ण वासूदेव घिरे रहते थे। द्वारिका में बलदेव राजा की रानी रेवती थी, उसने निषधकुमार को जन्म दिया। भगवान अरिष्टनेमि एक बार द्वारिका में पधारे। उनका आगमन सुन श्रीकृष्ण ने सामुदानिक भेरी द्वारा भगवान के आगमन की उद्घोषणा