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अंगबाह्य आगम साहित्य २६१ कल्पसूत्र में उत्तराध्ययन को अपृष्ट-व्याकरण अर्थात् बिना किसी के पूछे स्वतः कथन किया हुआ शास्त्र बताया है किन्तु वर्तमान के उत्तराध्ययन में आये हुए केशी-गौतमीय, सम्यक्त्व-पराक्रम अध्ययन जो प्रश्नोत्तर शैली में हैं वे चिन्तकों को चिन्तन के लिए अवश्य ही प्रेरित करते हैं। केशीगौतमीय अध्ययन में भगवान महावीर का जिस भक्ति और श्रद्धा के साथ गौरवपूर्ण उल्लेख है वह भगवान स्वयं अपने लिए किस प्रकार कह सकते हैं। अत: ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तराध्ययन में कुछ अंश स्थविरों ने अपनी ओर से संकलित किया हो। और उन प्राचीन और अर्वाचीन अध्ययनों को वीर निर्वाण की एक सहस्राब्दी के पश्चात् देवद्धिगणी क्षमाश्रमण ने संकलन कर उसे एक रूप दिया हो। विषय-वस्तु
भाषा और विषय की दृष्टि से यह प्राचीन है। इसकी विस्तृत चर्चा शारपेन्टियर, जेकोबी और विन्टरनित्ज प्रभृति विद्वानों ने की है। प्रस्तुत ग्रन्थ के अनेक स्थलों की तुलना बौद्धों के सुत्तनिपात, जातक और धम्मपद आदि से की जा सकती है। जैसे राजा नमि को बौद्ध साहित्य में प्रत्येकबुद्ध मानकर उसकी कठोर तपस्या का वर्णन किया है । हरिकेशमूनि की कथा कुछ प्रकारान्तर से मातंग जातक में मिलती है। चित्त-संभूत की कथा की तुलना चित्तसंभूत जातक से की जा सकती है। इषुकार कथा की तुलना हस्थिपार जातक में वर्णित कथा से हो सकती है। प्रत्येकबुद्धों की कथा कुम्भकार जातक में कही गई है। मृगापुत्र की कथा भी कुछ प्रकारान्तर से बौद्ध साहित्य में आती है।
इसी प्रकार इस आगम के सुभाषित व संवाद भी बौद्ध ग्रन्थों में मिलते हैं। जो इसकी प्राचीनता को सिद्ध करते हैं।'
उत्तराध्ययन में ३६ अध्ययन हैं। उपलब्ध मूलपाठ २१०० श्लोक प्रमाण हैं । १६५६ पद्यसूत्र हैं और ८६ गद्यसूत्र हैं।
उत्तराध्ययन का प्रथम अध्ययन 'विनय' है। विनय का अर्थ अनुवर्तन, प्रवर्तन, अनुशासन, शुश्रूषा और शिष्टाचार का परिपालन है।
१ (क) दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि की भूमिका (आचार्यश्री तुलसी)
(ख) उत्तराध्ययनसूत्र-उपाध्याय अमरमुनि की भूमिका २ विन्टरनित्जः हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लिटरेचर, माग २, पृ० ४६७-८ ।