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विपत्ति की वर्षा :. सोने की ही कसोटी होती है, पीतल की नही ।
एक बार विजय हीरसूरीश्वरजी महाराज अपने परिवार के साथ खंभात नगरमें विराजीत थे। तब रत्नपाल नामक एक श्रावक आया। उसने कहा, गुरुवर ! मेरा लडका रामजी तीन सालका है। वह बहुत बीमार रहता है। आपके प्रभाव से जो लडका अच्छा हो जायगा, तब आपका शिष्य बनाएंगा। अचानक आपके प्रभावसे रामजी दिन व दिन अच्छे होने लगे। और इस बात को आठ साल हो गये। पू. हीर सूरीश्वरजी विहार करते करते पुनः खंभात पधारे। पूज्यश्रीने रत्नपाल को अपना वचन पालन करने को कहा। तब रत्नपाल सूरीश्वरजी को कहने लगा, आपको मैंने ऐसा कब कहा था, ? व कहकर बदल गया। इतना हि नही बल्कि उसने अपने रिस्तेदारों को बुलाया और कहा, आचार्य होरसूरीश्वरजी मेरे लडके को उठा ले जाते है। तब सुबा सिताबखाँ को कहा। सुबा सिताबखांने हीर सूरि को जेल में डालने के लिये आज्ञा दे दी।
इस समय सारे गुजरातमें नादीरशाही चलती थी। न्याय और अन्यायको देखते ही नहीं थे। जिससे प्रजा अत्यंत साहित बन गई थी।
होर सूरिजी को ये समाचार मिल गया। इसलिए उन्हें २३ दिन तक गुप्त स्थानमें रहना पड़ा।
ओर भी वि. सं. १६२० सालमें बोरसद गांवमें घटना घटी कि, जगमाल ऋषिनें पू. होरसूरीश्वरजी महाराज के पास Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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