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को बुलाया, और उक्त विषय के प्रश्न पूछे, सूरिजीने कहा, आपको अध्यक्षतामें एक सभा बुलाकर उसका निर्णय करेंगे।
बादशाहने एक दिन मुकरर किया। एक तरह विद्वान 'ब्राह्मण पंडित आये दूसरी तरह विजयसेनसूरि - नंदीविजय आदि पधारे। दोनों पक्षोंने अपना-अपना मतका प्रतिपादन किया। इसमें विजयसेनसूरिने तर्क और प्रभावोत्पादक युक्तियाँसे ऐसा निरसन किया कि सारी सभा स्तब्ध हो गई और पंडितजी निरुत्तर बन गये। वहां बादशाहने प्रसन्न होकर 'सरिसवाई' की पदवी देकर आपका बहुमान किया।
विजयसेनसूरिने अपने उपदेशके प्रभावसे गाय-भेस-बेल आदि का हिंसा का निषेध और मृत मनुष्यका कर बंद कराये थे। और चार महिने तक सिंधु नदी और कच्छ के जलाशयोमें से मछलीयाँ नहीं मारने का फर्मान भी निकलवाया था।
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" लब्धिवाणी"
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श्रद्धा को स्थीर रखे, वही वास्तविक ज्ञान है !
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