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सम्मिलित हुये थे। कहा जाता है कि, इस यात्रा-संघमें एक हजार साधु और दो लाख मनुष्य थे। पालीताणामें आपको वंदना करते हुये डामर संघवीने सात हजार महमुंदिका (चलनी नाणा) का व्यय किया था।
दीवबंदर की लाडकी बाई नामक श्रावीकाने विज्ञप्ति की, कि आप सब जगह सग्यगज्ञान का प्रकाश डालते हो मगर हम लोग तो अंधेरे में गोरे है।
सूरिजीने कहा, आपकी भावना हो ऐसा होगा। उस समय एक आदमीने पालीताणासे दीवबंदर जाकर संघ को सूरिजी को पधारने की वधामणी दी। संघने उसको चार तोले की सोनेकीजीभ, वस्त्र और बहुत लहारीयाँ भेट दी।
आप, पालीताणासे महुवा आदि होकर उना पधारे । उस समय जामनगर के दीवान अबजी भणसालीने आकर आपकी और सब साधुको स्वर्णमुद्रासे नव अंगको पूजा की और एक लाख मुद्राका लुंछन किया, इतना ही नहीं याचकोंको बहुत दान भी दिया।
अब अपन सूरिजीके आंतरिक गुण-श्रेणी बताकर इन सुगुणमौक्तिकसे अपना जीवन सभर बनाईये।
सूरिजीमें क्षमा-समता-दाक्षिण्यता-गुरुआज्ञा इत्यादि गुण इतना ओतप्रोत था कि, जब अपने उनके जीवन-चर्या के एक-दो प्रसंग देखेंगे तो विदित हो जायगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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