________________
414
जब गुरुवरको मालुम हुआ तब आपकी गुरुभक्ति पर गुरुदेव अत्यंत प्रसन्न हो गये।
आप, एकांतमें घंटोंतक खडे - खडे ध्यान करते थे। कितनी बार तप्त हुई वालुका पर बैठकर आलापना लेते थे। एक बार सिरोहीमें खडे-खडे ध्यान करते थे, सहसा चक्कर आनेसे गीर गये। सब साधु सोते हुये उठ गये। सबनें आपको विनंति को, कि आपका शरीर अब बलहीन हो गया है। इसलिये बैठे-बैठे ध्यान कीजिये। आपके सुखाकारी से संघमें और समुदायमें क्षेमकुशल रहेगा। तब आपने नश्वरदेहका ऐसा महिमा समझाया कि, सब मुनि स्तब्ध हो गये और आपने देह पर का ममत्व कितना दूर किया है उनकी प्रशंसा करने लगे।
आप, जैसे ज्ञानी-ध्यानी-अष्टप्रवचनमाताके पालनमें सतत उपयोगशील थे। ऐसे तपस्वी भी बहुत थे। आपने अपने जीवन में ८१ अठुम, २२५ छठ्ठ, ३६०० उपवास, दो हजार आयंबील, दो हजार नीवी के साथ वीशस्थानक तपकी वीश बार आराधना-तपस्या की थी। तीन महिने तक ध्यानमें बैठ कर सूरिमंत्र का जाप किया था। और तीन महिनें दिल्ली में एकासण-आयंबोल-नीवी एवं उपचास किया था। ज्ञान की आराधनार्थे २२ महिने तपस्या की और गुरुतपमें २३ महिने तक छछु-अठ्ठम आदि किया था। रत्नत्रयीके आराधनके लिये २२ महिने बारह प्रतिमा वहन की थी।
आपके देहमें वय और अशुभोदयसे रोग आक्रांत हो गये ये। आपने औषध लेनेका बंद कर दिया। संघमें हाहाकार
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com