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मच गया।श्रावकोंने उपवास करके, और श्रावीकाओंने बच्चाओंको स्तन पान कराना बंदकर हडताल पर उतर गये, और उपाश्रयमें सूरिजी दवाई ले इस लिये बैठ गये।
• सोमविनयजी आदि साधु के अति आग्रहसे अपनी इच्छा विरुद्ध औषध लेनेको स्वीकृति की। चंद्रको देखकर सागर उमटता है ऐसे संघमें हर्षका सागर उछल पडा।
गच्छकी चिता और शासनके हितके कारण आपने विजय सेन सूरिको बुलानेकी तीव्र उत्कंठा हुई। साधुओंने मुनि धनविजयजी को उग्र विहार कराकर लाहोर भेजे। बादशाहकी आज्ञा लेकर विजयसेनसूरिने उनाकी ओर विहार कर लिया। जैसी आपको शिष्यको मिलनेकी तमन्ना थी ऐसी उन्होंने भी शीघ्र आपकी सेवामें पहुंचने की उम्मेद थी।
_ विजयसेनसूरि जैसे उग्र विहार कर रहे थे, ऐसे इधर भी सूरिजीके देहमें रोग तीव्र रुप पकड रहे थे।
चातुर्मास आया, पर्युषणा आया। अभी विजयसेनसूरिजी नहीं आये। चिता से आप अत्यंत व्यथित हो रहे थे। वाचक कल्याणविजयजी, वाचक विमल हर्ष और सोमविजय ने कहा, गुरुवर ! आप निश्चित रहें विजयसेनसूरिजी शीघ्र आ रहे है।
पर्यषणमें कल्पसूत्र का व्याख्यान आपनें ही दिया। इससे परिश्रम बहुत पडा और स्वास्थ्य ज्यादा शिथिल बना।
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