Book Title: Jagadguru Heersurishwarji
Author(s): Punyavijay
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

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Page 59
________________ 48 आनंद के साथ ज्यादा बोलने पाटणका सारा संघ एकत्र हुआ । चित्त स्वस्थ करावा । आपने आप उना की ओर पधारे । भगवान गौतम स्वामीकी तरह गुरु-विरह के मारा अति हृदयफाट लगे । तीन दिन ऐसा रहा । आपको बहुत समझाया और आहारपाणी लिया वहां से इधर चमत्कार एक ऐसा हो गया कि, जब सूरिजीको अग्निदाह दिया । तब सारे आमवृक्ष पर फल - महोर आ गये । वंध्य आम के पेड थे इस पर भी फल आ गये। वैशाखमें आने वाले आम फल भाद्रपद में कैसे आये सब आश्चर्य में पड गये । सब फल बडे-बडे शहर में, अबुलफजलको और बादशाहको भेजे गये, और सूरिजीका चमत्कारका पत्र भेजा गया । जिससे बादशाहकी सूरिजी के प्रति भक्ति श्रद्धा और बढ गई और उन्होंने स्तुति भी की । "1 वह स्तुति बादशाहके शब्दो में प्रस्तुत कर चरित्र समाप्त करताहुं । उन जगद्गुरुका जीवन धन्य है । जिन्होंने सारी जिंदगी दूसरोंका उपकार किया । और जिनके मरने पर ( असमय में) आम फले और जो स्वर्गमें जाकर देवता बनें। " " इस जमाने में उनके जैसा कोई सच्चा फकीर न रहा । " "जो सच्ची कमाई करता है वही संसार से पार होता है । जिसका मन पवित्र नहीं होता है, उसका मनुष्य भव व्यर्थ जाता है ।" 卐 समाप्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 卐 www.umaragyanbhandar.com

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