Book Title: Jagadguru Heersurishwarji
Author(s): Punyavijay
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ पिजरको छोडकर स्वर्ग प्रति मुक्त बन कर चला गया। वहाँ जय जय नंदा के घंटनाद हुआ। इधर गुरु विरह का आर्तनाद गुंज उठा। आप, ५६ साल का सुविशुद्ध संयम पालन करके ६९ साल की आयुः पूर्ण कर स्वर्धाम पधारें। गाँव गाँव में कासीद द्वारा कालधर्मका समाचार भेजा गया। इधर सारा जैन-जैनेतर वर्ग एकत्र हुआ। आपकी अंत्येष्ठी क्रिया कराई। तेरह खंडका भव्य विमान जैसी पालखी बनाके इसमें आपके विभूषित शबको पधराये। हजारों लोगोंने विविध प्रकारको दानको निधि उछालीं। घंटानाद बजाया। श्मशानयात्रा गाँव बाहर आंबावाडीमें आई। इधर शबको चितामें पधराया, तो संघ हृदयमें से नेत्रों द्वारा अश्रु बाहिर आये। चिता प्रगटावाइ और इसमें १५ मण चंदन-५ मण अगर-३ शेर कपूर-२ शेर कस्तुरी-३ शेर केसर और ५ शेर चुआ डाला गया। पार्थिव देह नष्ट हो गया मगर यशोदेह स्थिर रह गया। सब साधुओंने आपके विरह-वेदना से अठ्ठम किया था। जहां आपका अग्नि संस्कार हुआ था। इसके आसपास की २२ वीघे जमोन बादशाहनें जैन संघ को अर्पण की थी। वहाँ स्तुप बनाकर पगलांकी प्रतिष्ठा की गई। इधर विजयसेनसूरिजी उग्र विहार करते भा. व. ६ के दिन पाटण पधारे। आपने सोचा, गुरुजीका सुखद समाचार सुनेंगे। किंतु इधर तो आपको हत्य-भेदक गुरुवरका कालधर्मका समाचार मोलें तुर्त ही निश्चेत बनके गीर गये। और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60