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सूरिजी का स्वर्गगमन :
. सूरिजी दिल्ही से बिहार करते-करते नागोर पधारे थे । इधर जैसलमेर के संघ वंदनार्थ आये। उन्होंने सूरिजी की सोनया से पूजा की थी। आप इधर से पीपाड पधारे तब खुशाली में ताला नामक ब्राह्मणनें आपके स्वागत में बहुत धन व्यय किया था। वहां से आप सिरोही-पाटण-अहमदाबाद होकर राधनपुर पधारे। संघर्ने छः हजार सोनामहोर से आपकी गुरु पूजा की थी।
पुनः आप पाटण पधारे, उस समय आपको एक स्वप्न आया, "मैंने हाथी पर बैठकर पर्वतारोहण किया, और हजारों लोग वंदन कर रहे है।"
आपने सोमविजयको स्वप्न सुणाया, सोमविजयजीने कहा, आपको सिद्धाचल की यात्रा का महान लाभ होगा।
थोडे ही दिनों में आपकी पुनित निश्रा में पाटण से सिद्धाचलका छरीपालक संघका प्रस्थान हुआ। गुजरातकाश्मीर-बंगाल-पंजाब के बडे-बडे शहरों में आदमिओं को भेजकर संघ में पधारने की विनंति की गई। बहुत लोग संघ लेकर आये। इस संघमें ७२ संघवी थे। इनमें श्रीमल्लसंघवी के ५०० रथ थे।
___ सोरठके सूबेदार नौरंगखांको विदित हुआ, सूरिजो बड़े संघ के साथ आ रहे है। उस समय उसने आगेवानी लेकर
आपका भव्य स्वागत किया। इस संघमें पचास गांव-नगरोंका संघो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com