Book Title: Jagadguru Heersurishwarji
Author(s): Punyavijay
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

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Page 50
________________ सूरिजी के मुनिवरों में कई व्याख्यानविशारद और कवि थे। कई योगी ध्यानी एवं उग्रतपस्वी थे। शतावधानी-क्रिया कांडी एवं ताकिक-नैयायिक थे। और साहित्य इत्यादि भिन्नभिन्न विषय के प्रकांड विद्वान भी थे। जिससे अनेक लोगों प्रभावित होते थे । इसमें से दो-तीन अग्रणी आचार्यादि श्रेष्ठ मुनि पुङ्गव की पहिचान कराता हूं । जो सूरिजी के बडे आज्ञांकित और माननीय थे। विजयसेनमूरि .-- आपका जन्मस्थान नाडलाइ थे। जब आपकी सात साल की उम्र थी तब पिताने संयम लिया था। और नौ साल की उम्र हुई तब आपने, अपनी माता के साथ सुरत में वि. सं. १६१३ ज्ये. सु. १३ के मंगल दिन दीक्षा ली थी। आप इतने विद्वान थे कि आपने योगशास्त्र के प्रथम श्लोकका ७०० अर्थ किया था। आपको वि. सं. १६२६ में पंन्यासपद और वि. सं. १६२८ में उपाध्याय और आचार्यपद से अलंकृत किया गया था। अहमदाबाद-पाटण-कावी आदि नगरों में चार लाख जिनबिम्बों को आपने प्रतिष्ठा की थी। और तारंगाआरासर-सिद्धाचल आदि मंदिरों का जिर्णोद्धार भी कराया था। जब आप गच्छनायक हुये थे। जब आप गच्छनायक हुये थे, तब आपके समुदायमें ८ उपाध्याय, १५० पंन्यास और बहुत साधु विद्यमान थे। आप ६८ साल की आयु पूर्णकर खंभात के परा-अकबरपुरमें स्वर्ग सिधाये थे। शांतिचन्द्रजी उपाध्याय – आपके गुरु सकलचन्द्रजी थे। आपने इडर और सुरत में दिगंबराचार्य के साथ वाद करके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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