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सेवकें और खंभात के एक भाई सब मिलकर दश भाई-बहिनों की खंभात में बड़े उल्लास से दीक्षा हुई थी। ' तक वायणां आदि शुभकार्य हुआ था । चलनी नाणा महमंदी का पैंतीस हजार का खर्च हुआ था ।
उन्हों का तीन महिनें दीक्षा में उस समय का
तीसरे प्रकरण में जिस रामजी लडको की बात जो आप पहले पढ़ चुके है। उन्होंने चारित्र को प्रबल भावना से शादी नहीं की थी । उनको पिता और बहिन दीक्षा नहीं दिलाते थे इसलिये उसने भगकर दीक्षा अंगीकार कर ली थी । आदि ग्यारह मनुष्यों ने भी दोक्षाली थी । अहमदाबाद एक ही साथ अठारह मनुष्यों की दीक्षा सूरिजी के वरद हस्ते ठाटबाट से हुई थी ।
मेघविजय
बादशाह के पास जेतारण नामक बादशाह का कृपापात्र था । उन्होंने भी हुई । उसने बादशाह की अनुमति माँगी । परीक्षा कर आज्ञा दे दी । उसकी ठाठ से दीक्षा होने से जीत विजयजी 'बादशाही यति' के नामसे प्रसिद्ध हुये ।
गृहस्थ था । वो दीक्षा की भावना
बादशाह ने उसकी
एक बार आप सिरोही में बोराजते थे । रात को स्वप्न आया कि हाथी के चार बच्चे सुंढमें पुस्तक लेके पढ रहे है । सुबह सूरिजीनें सोचा, चार महान शिष्य का लाभ होंगे। थोडे ही दिनमें रोह का ( आबू के पास ) सुप्रसिद्ध श्रीवंत शेठ अपने चार पुत्रोंपुत्र - बहिन-बहनोई - भाणजा और अपनी स्त्री के साथ सिरोही में दीक्षा लेने को आये थे । इसमें से कुंवरजी लडका आगे जाकर आ. विजयानंदसूरि बने थे ।
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