Book Title: Jagadguru Heersurishwarji
Author(s): Punyavijay
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

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Page 51
________________ 40 विजय प्राप्त किया था । वि. सं. १६५१ में आपने जंबुद्विपपन्नति को टीका की है । आपके चारित्र के प्रभाव से वरुणदेव आपके सदा सान्निध्य में थे । इसलिये आपनें बादशाहको कई चमत्कार बताकर अहिंसा और शासनको प्रभावना प्रसारी थी । आपके जन्मभूमि सिद्धपुर पाठकवर मानुचन्द्रजी आप लडकपण से बहुत चतुर थे । थी । आपको दुसरा भाई भी था । आप दोनों के साथ में प्रव्रजीत हुये थे । आपकी विद्वता और योग्यता से सूरिजीनें बादशाहके पास आपको रखा था। उन्हों का ऐसा प्रभाव बादशाह पर पडा था कि वो आगे के प्रकरण में देख गये है । अकबर के देहांत बाद भी भानुचंद्रजी पुनः आगरा गये थे, और जहांगीर के पास फरमानें कायम रखने का और उन्हें पालन कराने का हुकम कराया था । जहांगीर को भानचन्द्रजी पर बहुत श्रद्धा थी । आपनें बुरहानपुर में उपदेश के प्रभाव से दस नये मंदिर बनवाये थे । जालोर में एक ही साथ एकतीस पुरुषों को आपने दीक्षा दी थी । आपको तेरह पंन्यास और ८० विद्वान शिष्य थे । ओर भी वाचक कल्याणविजय, पध्मसागरजी, उपाध्याय धर्मसागरजी गणि, सिद्धिचन्द्रजी, नंदिविजय, हेमविजयजी आदि भी धुरंधर मुनिवर थे । उन्होंने भी स्व पर कल्याण के कार्य कर शासन की विजयपताका चारें ओर लहराई थी । " लब्धिवाणी " हाथ का भूषण हेन्डवॉच नही मगर दान है, कंठ का भूषण सौ तोलेका सोने का कंठा नही मगर सत्य वचन है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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