Book Title: Jagadguru Heersurishwarji
Author(s): Punyavijay
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

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Page 45
________________ 34 सुवाओं को प्रतिबोध : हीरसूरिजी महाराजनें अकबर को जैसा प्रतिबोध दिया, ऐसे राजा-महाराजा और सुबाओं को भी बोध दिया था। क्योंकि बादशाह को सरलता से समजा सकते है । सत्ता के मद से मस्त होते थे और अहमेंन्द्र थे । अराजकता भी बहुत चलती थी । इसलिये बहुत थे । मगर सुबाओं तो और उस समय जुल्मी भी वो वि. सं. १६३० सालमें पाटण के सुबेदार कलाखाँ बहुत जुल्मी थे । उसका नाम सुनके प्रजा कंपित हो जाती थी । ऐसे जीव को भी उपदेश के जल से शान्त बनाकर, जिस बंदी को प्राणदन्ड की सजा दी थी । उसको मुक्त कराया और सारे नगर में एक महिना की अमारि की उद्घोषणा कराई । सूरिजी वापिस गुजरात आ रहे थे । तब मेडता के सुबा खानखाना नें मुलाकात की । वो मुसलमान थे, इसलिये उन्होंने मूर्तिपूजा के विषय में प्रश्न पूछे, सूरिजीनें ऐसा समाधान दिया कि, उसने खुश होकर सूरिजी को बहुत मूल्यवान पदार्थों की भेट दी । सूरिजीनें वो नहीं ग्रहण करके अपना धर्माचार का ब्यान दिया । जिससे वो सूरिजी पर आफ़ोन हो गये । सिरोही के आंगण में सूरिजी पधारे । तब वहां का राजा महाराव सुरतान पर ऐसा उपदेश का प्रभाव डाला कि, प्रजा पर जुल्मी कर लेते थे वो बंद करा दिया। और बिना कारण एकसो श्रावकों को जेल में डाला गया था । जिससे सारे संघ में हाहाकार की करुण हवा प्रसर गई थी । सूरिजीनें कोई कारण बताकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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