________________
भानुचंद्रजी को बडा समारोह के साथ वाचक पदसे अलंकृत किया गया। तब अबुलफजलने पच्चीस घोडा और दस हजार रुपये का दान दिया और संघने भी बहुत दान-सरिता बहाई ।
भानुचंद्रजी जैसा विद्वान थे ऐसे उनके शिष्य सिद्धिचन्द्र भी विद्वान और शतावधानी थे। बादशाहनें उन्हों का चमत्कार से उन्हें 'खुशफरम' की पदवी दी थी। सिद्धिचंद्रने, बुरहानपुर में बत्तीस चोर मारे जाते थे उनको बादशाहकी आज्ञा लेकर छुडाये थे। और एक बनिया हाथी के पाँव नीचे मारा जाताथा उनको भी छुडाया था। उनका फारसी भाषापर अच्छा प्रभुत्व था।
बादशाहने सिद्धिचन्द्रकी साधु धर्मकी परीक्षा करने के लिये पहले बहुत धनवैभव का लोभ दिखाया। मगर जब वह चलित न हुवे तो उन्होंने मारने की भी धमकी दी, उससे भी वो डरे नहीं। बल्कि उन्होंने बादशाह को ऐसे-ऐसे खुल्ले शब्दो में सुना दिया कि बादशाह सुनकर उनके चरणकमलमें अपना शिर डालकर भावपूर्ण वंदना करने लग गया।
एक बार बादशाह लाहोरमें था। अकस्मात उनको सूरिजी को बुलाने की मनोकामना हुई। अबुलफजल को बुलाया, और सूरिजीको आमंत्रण देनेको कहा, तब अबुलफजलनें कहा, नामवर ! वो तो बड़े वृद्ध हो गये है, मगर विजनसेनसूरिको आमंत्रण दो, सूरिजीने भी उनको भेजने का वचन दिया है।
__ तब बादशाहने सूरिवर पर श्रद्धा पूर्ण ऐसा भाव-सभर पत्र लिखा कि पढकर सूरिजो गहन विचार-धारामें लीन हो गये। एक
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com