Book Title: Jagadguru Heersurishwarji
Author(s): Punyavijay
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

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Page 40
________________ सूरिजी के पास बादशाहनें जीवहिंसामें महापाप है। वो बहुत दफे सुना था। अतः उसने अपने उमराव-सरदार-अबुलफजल और मौलवीओं को बुलाकर मुसलमानों का परम श्रद्धेय धर्मग्रंथ को पढाया। बाद लाहोर में ढंढेरा पिटवा दिया कि कल इदके दिन कोई भी व्यक्ति किसी भी जीवकी हिंसा न करें। थोडे दिन बाद उन्होंने बादशाह के पास से मोहरमके महिने और सूफी लोग के दिनों में तथा बादशाह के तीन लडके जहांगीर, मुराद और दानीयाल का जन्म दिन का महिने में जीव हिंसा नहीं करने का फर्मान जाहिर कराया था। सब मिलकर एक सालमें छः महिनें और छः दिन अधिक अपने सारे राष्ट्र में जीवहिंसा बंद करवाई थी। इतना उन्होंका बादशाह पर प्रभाव पड़ा था। उपाध्यायजी वहांसे विहार कर गुजरात पधारे, तब भानुचन्द्र और सिद्धिचंद्र गुरु-शिष्य बादशाह के पास थहरे थे। उन्होंने अपनी विद्वता और कुछ चमत्कारपूर्ण विद्या से बादशाह को बहुत आदरवाले बनाये थे। बादशाह जहां जाते थे वहां भानुचन्द्रजी को साथ में ले जाते थे। ___एक समय की बात है। बादशाह के शिर में बहुत पीडा हुई। वैद्य, हकीमों को दवाई की मगर पीडा शांत न हुई। तब उसने भानुचंद्रजी को बुलाकर, उनका हाथ अपने शिर पर रख दिया । थोड़े दी देर में दर्द नष्ट हो गया। इनकी खुशाली में उमरावोंने कुर्बान के लिये पांचशौ गाय इकठ्ठी को। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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