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सूरिजी पधारे और प्रभावोत्पादक उपदेश सुणाया। इस बार सूरिजीने सम्राटको महत्त्वका कार्य बतलाया कि, आप ! मेरे कथनानुसार कई अच्छे अच्छे कार्य करते हो। तो भी लोक कल्याण की भावना मेरे अंतरमें प्रगट हुई है कि, आप अपने राज्यमें से 'जजिया' कर उठालो, जो तीर्थों में हर यात्रीके पास टेक्स लिया जाता है व बंद करा दो। क्योंकि इन दो बातों से लोगों को बहुत दुःख होता है, वह नहीं होगा। इससे जन-वर्गमें आनंद की लहर बढेगी और सब आपको कल्याण के आशीष देंगे। उसी समय बादशाहनें दोनों फर्मान लिख दिये।
सूरिजी दिल्लीमें रहे थे। मगर बीच • बीच मथुरा, ग्वालियर आदि तीर्थोकी यात्रार्थ भी पधारे थे। यात्रा करके पुनःसूरिजी आगरा पधारे तब सदारंग नामक श्रावकनें हाथी, घोडा आदि कई पदार्थों का दान देकर भव्य स्वागत किया था। इधर बहुत समय हो जाने से विजयसेन सूरिजी का बार-बार पत्र आते थे। आप शीघ्र गुजरात पधारिये।
एक बार समय देखकर सूरिजीने बादशाह को कहा, मेरे को गुजरात अवश्य जाना ही पडेगा। तब बादशाहनें कहा, आप इधर स्थिरता किजीये। आपके सुधा-सदश दर्शनसे मेरेको बहुत लाभ हुआ है। मगर सूरिजो को जाने का दृढ निश्चयसे बादशाह ने अनुमति दी। और जब तक इधर विजयसेनसूरिजी न पधारे तभी आपके एक विद्वान मुनिवर को इधर रखकर जावे इतनी मेरी आपसे प्रार्थना है।
सूरिजीने उपा. शान्तिचंद्रजीको रोककर दिल्लीसे गुजरात प्रति प्रस्थान किया।
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